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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601
आईएसबीएन :9781613012420

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    हमारे इस देश में अभी भी धर्म और आध्यात्मिकता विद्यमान है, जो मानो ऐसे स्रोत हैं, जिन्हें अबाध गति से बढ़ते हुए समस्त विश्व को अपनी बाढ़ से आप्लावित कर पाश्चात्य तथा अन्य देशों को नवजीवन तथा नवशक्ति प्रदान करनी होगी। राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं और सामाजिक कपटों के कारण ये सब देश आज अर्धमृत हो गये है, पतन की चरम सीमा पर पहुँच चुके हैं, उनमें अराजकता छा गयी है।

•    पर ध्यान रखो, यदि तुम इस आध्यात्मिकता का त्याग कर दोगे और इसे एक ओर रखकर पश्चिम की जड़वादपूर्ण सभ्यता के पीछे दौड़ोगे, तो  परिणाम यह होगा कि तीन पीढियों में तुम एक मृत जाति बन जाओगे; क्योंकि इससे राष्ट्र की रीढ़ टूट जाएगी, राष्ट्र की वह नींव जिस पर इसका निर्माण हुआ है, नीचे धँस जाएगी और इसका फल सर्वांगीण विनाश  होगा।

•    भौतिक शक्ति का प्रत्यक्ष केन्द्र यूरोप, यदि आज अपनी स्थिति में परिवर्तन करने में सतर्क  नहीं होता, यदि वह अपना आदर्श नहीं बदलता औऱ अपने जीवन को आध्यात्मिकता पर आधारित नहीं करता, तो पचास वर्ष के भीतर वह नष्ट-भ्रष्ट होकर धूल में मिल जाएगा औऱ इस स्थिति में इसे बचानेवाला यदि कोई है तो वह है उपनिषदों का धर्म।

•    हमारे घमण्डी रईस-पूर्वज हमारे देश की सर्वसाधारण जनता को अपने पैरों से तब तक कुचलते रहे, जब तक कि वे निस्सहाय नहीं हो गये जब तक कि वे बेचारे गरीब प्राय: वह तक भूल नहीं गये कि वे मनुष्य हैं। वे शताब्दियों तक केवल लकडी काटने और पानी भरने को इस तरह विवश किये गये कि उनका विश्वास हो गया कि वे गुलाम के रूप में ही जन्मे हुए हैं, लकडी काटने औऱ पानी भरने के लिए ही पैदा हुए हैं।

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