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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601
आईएसबीएन :9781613012420

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    जो अपने आपको ईश्वर को समर्पित कर देते हैं, वे तथाकथित कर्मियों की अपेक्षा संसार का अधिक हित करते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने को पूर्णत: शुद्ध कर लिया है, वह उपदेशकों के समूह की अपेक्षा अधिक सफलतापूर्वक कार्य करता है। चित्तशुद्धि औऱ मौन से ही शब्द में शक्ति आती है।

•    हमें आज जिस बात को जानने की आवश्यकता है वह है ईश्वर- हम उसे सर्वत्र देख औऱ अनुभव कर सकते हैं।

•    ‘भोजन, भोजन’ चिल्लाने औऱ उसे खाने तथा ‘पानी, पानी’ कहने और उसे पीने में बहुत अन्तर है। इसी प्रकार केवल ‘ईश्वर, ईश्वर’ रटने से हम उसका अनुभव करने की आशा नहीं कर सकते। हमें उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, साधना करनी चाहिए।

•    बुराईयों के बीच भी कहो-‘मेरे प्रभु, मेरे प्रियतम।’ मृत्यु की यन्त्रणा में भी कहो-‘मेरे प्रभु, मेरे प्रियतम।’ संसार की समस्त विपत्तियों में भी कहो-‘मेरे प्रभु, मेरे प्रियतम! तू यहाँ है, मैं तुझे देखता हूँ। तू मेरे साथ है, मैं तुझे अनुभव करता हूँ मैं तेरा हूँ, मुझे सहारा दे। मैं संसार का नहीं, पर केवल तेरा हूँ, तू मुझे मत त्याग।’ हीरों की खान को छोड़कर काँच की मणियों के पीछे मत दौड़ो। यह जीवन एक अमूल्य सुयोग है। क्या तुम सांसरिक सुखों की खोज करते हो?- प्रभु ही समस्त सुख के स्रोत हैं। उसी उच्चतम को खोजो, उसी को अपना लक्ष्य बनाओ और तुम अवश्य उसे प्राप्त करोगे।

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