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सरल राजयोग
सरल राजयोग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :73
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 9599
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आईएसबीएन :9781613013090 |
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
स्नान के पश्चात् बैठ जाओ। आसन दृढ़ रखो अर्थात् ऐसी भावना करो कि तुम चट्टान की भांति दृढ़ हो, तुम्हें कुछ भी विचलित करने में समर्थ नहीं है। सिर, गर्दन और कमर एक सीधी रेखा में रखो, पर मेरुदण्ड के ऊपर जोर न डालो। सारी क्रियाएँ मेरुदण्ड के ही सहारे होती हैं, अत: इसको क्षति पहुँचानेवाला कोई कार्य न होना चाहिए।
अपने पैर की अँगुलियों से आरम्भ करके शरीर के प्रत्येक अंग की स्थिरता की भावना करो। इस भाव का अपने में चिन्तन करो और यदि चाहो तो प्रत्येक अंग का स्पर्श करो। प्रत्येक अंग पूर्ण है अर्थात् उसमें कोई विकार नहीं है इस प्रकार सोचते हुए धीरे-धीरे ऊपर चलकर सिर तक आओ। फिर समस्त शरीर के पूर्ण यानी निर्दोष होने के भाव का चिन्तन करो। इस प्रकार विचार करो कि मुझे सत्य का साक्षात्कार करने हेतु यह ईश्वर द्वारा प्रदत्त साधन है; यह वह नौका है, जिस पर बैठकर मुझे संसार-समुद्र पार करके अनन्त सत्य के तट पर पहुँचना है। इस क्रिया के पश्चात् अपनी नासिका के दोनों छिद्रों से एक दीर्घ श्वास लो और उसे बाहर निकाल दो। इसके पश्चात् जितनी देर तक सरलतापूर्वक बिना श्वास लिये रह सको, रहो। इस प्रकार के चार प्राणायाम करो और फिर स्वाभाविक रूप से श्वास लो और भगवान् से ज्ञान के प्रकाश के लिए प्रार्थना करो।
''मैं उस सत्ता की महिमा का चिन्तन करता हूँ जिसने विश्व की रचना की है, वह मेरे मन को प्रबुद्ध करे।'' दस-पन्द्रह मिनट इस भाव का ध्यान करो।
अपनी अनुभूतियों को अपने गुरु के अतिरिक्त और किसी को न बताओ।
यथासम्भव कम से कम बात करो।
अपने विचारों को सद्गुणों पर केन्द्रित करो; हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।
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