ई-पुस्तकें >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
प्रथम पाठ
इस पाठ का उद्देश्य व्यक्तित्व का विकास है। प्रत्येक के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास आवश्यक है। हम सभी एक केन्द्र में जा मिलेंगे। 'कल्पना-शक्ति प्रेरणा का द्वार और समस्त विचार का आधार है।' सभी पैगम्बर, कवि और अन्वेषक महती कल्पनाशक्ति से सम्पन्न थे। प्रकृति के रहस्यों की व्याख्या हमारे भीतर ही है; पत्थर बाहर गिरता है, लेकिन गुरुत्वाकर्षण हमारे भीतर है, बाहर नहीं। जो अति आहार करते हैं, जो उपवास करते हैं, जो अत्यधिक सोते हैं, जो अत्यल्प सोते हैं, वे योगी नहीं हो सकते। अज्ञान, चंचलता, ईर्ष्या, आलस्य और अतिशय आसक्ति योगाभ्यास के महान् शत्रु हैं। योगी के लिए तीन बातों की बड़ी आवश्यकता. है-
प्रथम - शारीरिक और मानसिक पवित्रता। प्रत्येक प्रकार की मलिनता तथा मन को पतन की ओर ढकेलनेवाली सभी बातों का परित्याग आवश्यक है।
द्वितीय - धैर्य। प्रारम्भ में आश्चर्यजनक दर्शन आदि होंगे, पर बाद में वे सब अन्तर्हित हो जाएँगे। यह सब से कठिन समय है। पर दृढ़ रहो, यदि धैर्य रखोगे, तो अन्त में सिद्धि सुनिश्चित है।
तृतीय - अध्यवसाय या लगन। सुख-दुःख, स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य सभी दशाओं में साधना में एक दिन का भी नागा न करो।
साधना का सर्वोत्तम समय दिन और रात की सन्धि का समय है। यह हमारे शरीर की हलचल के शान्त रहने का समय - चंचलता और अवसाद दोनों दशाओं का उस समय आधिक्य नहीं रहता। यदि इस समय न हो सके, तो नींद से उठते ही और सोने के पूर्व अभ्यास करो। नित्य स्नान करना - शरीर को अधिक से अधिक स्वच्छ रखना - आवश्यक है।
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