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राख और अंगारे

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9598
आईएसबीएन :9781613013021

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मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।

उन्होंने प्यार से रेखा को चुमकारा।

सवेरा होने में अभी काफी देर थी। रात का अंधेरा अभी तक वातावरण पर छाया हुआ था, परन्तु मन्दिरों में घड़ियाल प्रभात के आगमन का स्वागत कर रहे थे। उसी समय रमेश एक टैक्सी से उतरा और सीधा राणा साहब के कमरे में चला आया। राणा साहब, मां, नीला और घर के सब नौकर-चाकर रेखा के कमरे के बाहर खड़े थे। सबने एक उदास दृष्टि से रमेश को देखा। वह चुपचाप क्षण भर खड़ा रहकर बिना किसी से कुछ पूछे रेखा के कमरे में घुस गया।

रेखा सामने बिस्तर पर लेटी थी।

'रेखा...!’ रमेश ने प्यार भरे स्वर में पुकारा।

'रमेश....! तुम आ गए मानो मुझे मेरी आत्मा मिल गई।'

'पर यह उलट-फेर कैसे हो गया?'

'होनहार था, हो गया.. तुम्हीं ने तो कहा था कि घर ले चलोगे, मेरी हर सुख-सुविधा का ख्याल रखोगे।'

'ठीक ही तो कहा था।'

'तो लो, आज मैं तुम्हारी शरणागत हूं, मुझे आश्रय देकर मेरे उचित-अनुचित अपराधों को क्षमा कर दो।'

'सच रेखा?'

रेखा ने मुस्कराकर स्वीकारात्मक सिर हिला दिया।

रमेश प्रसन्न-विभोर हो वाहर निकल आया। डाक्टर और घर के अन्य व्यक्ति बड़ी बेचैनी से उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वह डाक्टर को सम्बोधित कर बोला,’धन्यवाद, चिंता की कोई बात नहीं, आप जा सकते हैं।'

सबके मुख पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। राणा साहब डाक्टर को छोड़ने बाहर दरवाजे तक गए।

अन्धेरा दूर हो चुका था सूर्योदय के साथ ही आकाश के पक्षी उड़ चले और उड़ चला रमेश, रेखा को साथ लेकर प्रात: कालीन वायु-सेवा के लिए।

फोर्ट विलियम की दीवार के साथ-साथ बढ़ती गाड़ी जब जनता होटल के पास पहुंची तो कुछ लोगों की भीड़ देख रमेश ने गाड़ीवान को गाड़ी रोकने को कहा। कमेटी की मोटर भीड़ के पास खड़ी थी। रेखा ने देखा और उसने अपनी दृष्टि हटा ली। रमेश ने पास खड़े व्यक्ति से घटना का कारण पूछा। उसने बतलाया-- 'होटल में एक मृत व्यक्ति मिला है, डाक्टर का कहना है कि मरने वाले ने आत्महत्या की है... अभी तक उसका कोई वारिस नहीं मिला। इसलिए उसे कमेटी की गाड़ी में ले जा रहे हैं।'

'रेखा ठहरो...... मैं अभी देखकर आता हूं।’

‘जाने दो होगा कोई आवारा कुत्ता।’

मुस्कराकर रमेश ने गाड़ीवान को गाड़ी बढाने के लिए कहा, फिर रेखा की ओर अभिमुख होकर कुछ कहने ही वाला’ था कि चौंककर वोला---- ‘हैं..... तुम्हारी आंखों में आंसू!’

'जब बादल प्रसन्नता से झूमकर मचलते हैं तो उन्हें बरसना ही पड़ता है।’

रमेश ने रेखा का सिर अपने सीने पर रख लिया-- और जन्म-जन्म की थकी रेखा की आत्मा को जैसे शांति मिल गई हो।

।। समाप्त।।

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