भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
भविष्य
हमारा भविष्य
किसी कुम्हार के हाथों नियंत्रित
चाक् पर
अंगुलियों में दबे
मिट्टी के लोथड़े की तरह
जो, नहीं जानता
अपना अगला स्वरूप।
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