भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
|
7 पाठकों को प्रिय 185 पाठक हैं |
संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
पहाड़
कभी
जब में
तन्हाई से बातें करता हूं
सोचता हूं कि
किसी पहाड़ सा
ख़ामोश हो जाऊँ।
फिर,
पहाड़ के नीचे बसी बस्ती के
घरौंदों से झांकती
आश्चर्य से खिचीं आँखों को
देखकर सोचता हूं -
कि उनमें से किसी को
मुझ तक आई आवाज को
खुद से टकराकर
वापस उन तक पहुंचने से
रोक पाऊंगा मैं?
0 0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book