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पवहारी बाबा

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9594
आईएसबीएन :9781613013076

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यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।

पूर्णाहुति


महायोगी अवधूत गुरु दत्तात्रेय के प्रवास से पुनीत होने के कारण गिरनार पर्वत हिन्दुओं में प्रसिद्ध है और कहा जाता है कि इस पर्वत की चोटी पर किसी-किसी भाग्यशाली व्यक्ति को अब भी महान् सिद्ध योगियों के दर्शन हो जाते हैं।

हमारे युवक ब्रह्मचारी ने अपने जीवन के दूसरे मोड़ में एक साधक संन्यासी का शिष्यत्व ग्रहण किया। ये संन्यासी कहीं वाराणसी के निकट गंगा के तट पर रहते थे। उनका निवासस्थान गंगा की उच्च तटभूमि में खुदी हुई एक गुफा था। हमारे चरित्रनायक सन्त पवहारी बाबा भी अपने भविष्य जीवन में गाजीपुर के निकट गंगा के किनारे जमीन के नीचे बनायी हुई एक गहरी गुफा में वास करते थे। हम अनुमान कर सकते हैं कि उन्होंने यह बात अपने योगी गुरु से ही सीखी होगी। योगियों ने सदैव ऐसी ही गुफाओं अथवा स्थानों में रहने का उपदेश दिया है, जहाँ का तापमान सम हो और कोलाहल मस्तिष्क को विचलित न कर सके।

हमें यह भी ज्ञात हुआ है कि वे लगभग इसी समय वाराणसी के एक संन्यासी के पास अद्वैत दर्शन का अध्ययन कर रहे थे।

अनेक वर्षों तक भ्रमण, अध्ययन तथा साधना करने के उपरान्त युवक ब्रह्मचारी उस स्थान पर लौट आये, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ था। यदि उनके चाचाजी उस समय तक जीवित रहते, तो वे सम्भवत: उनके मुखमण्डल पर वही ज्योति देखते, जो प्राचीनकाल के एक महान् ऋषि ने अपने शिष्य के मुख पर देखी थी और कहा था,

 'हे सौम्य, देख रहा हूँ - आज तुम्हारे मुख पर ब्रह्मज्योति झलक रही है।''
ब्रह्मविदिव वै सोम्य भासि - छान्दोग्योपनिषद् 4/9/2

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