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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


सीता-शुकी संवाद


एक दिन परम सुन्दरी सीताजी सखियोंके साथ उद्यानमें खेल रही थीं। वहाँ उन्हें शुक पक्षीका एक जोड़ा दिखायी दिया जो बड़ा मनोरम था। वे दोनों पक्षी एक डालीपर बैठकर इस प्रकार बोल रहे थे-'पृथ्वीपर श्रीराम नामसे प्रसिद्ध एक बड़े सुन्दर राजा होंगे। उनकी महारानी सीताके नामसे विख्यात होंगी। श्रीरामजी बड़े बुद्धिमान् और बलवान् होंगे। वे समस्त राजाओंको अपने वशमें रखते हुए सीताके साथ ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य करेंगे। धन्य हैं वे जानकीदेवी और धन्य हैं श्रीराम, जो एक-दूसरेको प्राप्त होकर इस पृथ्वीपर आनन्दपूर्वक विहार करेंगे।'

उनको ऐसी बातें करते देख सीताजीने सोचा-'ये दोनों मेरे ही जीवनकी मनोरम कथा कह रहे हैं। इन्हें पकड़कर सभी बातें पूछूँ।' ऐसा विचारकर उन्होंने अपनी सखियोंके द्वारा उन दोनोंको पकड़वाकर मँगवाया और उनसे कहा-'तुम दोनों बहुत सुन्दर हो, डरना नहीं। बताओ, तुम कौन हो और कहाँसे आये हो? राम कौन हैं? और सीता कौन हैं? तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई? इन सारी बातोंको शीघ्रातिशीघ्र बताओ। मेरी ओर से तुम्हें कोई भय नहीं होना चाहिये।'

सीताजीके इस प्रकार पूछनेपर उन पक्षियोंने कहा-'देवि! वाल्मीकि-नामसे प्रसिद्ध एक बहुत बड़े महर्षि हैं, जो धर्मज्ञोंमें श्रेष्ठ माने जाते हैं। हम दोनों उन्हींके आश्रममें रहते हैं। महर्षिने रामायण नामक एक महाकाव्यकी रचना की है, जो सदा ही

मनको प्रिय जान पड़ता है। उन्होंने शिष्योंको उसका अध्ययन कराया है तथा प्रतिदिन वे सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें संलग्न रहकर उसके पद्मोंका चिन्तन किया करते हैं। उसका कलेवर बहुत बड़ा है। हमलोगोंने उसे पूरा-पूरा सुना है। बारम्बार उसका गान तथा पाठ सुननेसे हमें भी उसका अभ्यास हो गया है। राम और सीता कौन हैं-यह हम बताते हैं तथा इसकी भी सूचना देते हैं कि श्रीरामके साथ क्रीड़ा करनेवाली जानकीके विषयमें क्या-क्या बातें होनेवाली हैं, तुम ध्यान देकर सुनो। महर्षि ऋष्यश्रृंगके द्वारा कराये हुए पुत्रेष्टि-यज्ञके प्रभावसे भगवान् विष्णु राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न-ये चार शरीर धारण करके प्रकट होंगे। देवांगनाएँ भी उनकी उत्तम कथाका गान करेंगी। श्रीराम महर्षि विश्वामित्रके साथ भाई लक्ष्मणसहित हाथमें धनुष लिये मिथिला पधारेंगे। वहाँ वे एक ऐसे धनुषको (जिसे दूसरा कोई उठा भी नहीं सकेगा) तोड़ डालेंगे और अत्यन्त मनोहर रूपवाली जनककिशोरी सीताको अपनी धर्मपत्नीके रूपमें ग्रहण करेंगे। फिर उन्हींके साथ श्रीरामजी अपने विशाल साम्राज्यका पालन करेंगे। ये तथा और भी बहुत-सी बातें जो वहाँ रहते समय हमारे सुननेमें आयी हैं, संक्षेपमें मैंने तुम्हें बता दीं। अब हम जाना चाहते हैं, हमें छोड़ दो।'

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