ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँस्वामी रामसुखदास
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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।
विपुलस्वान् मुनि और उनके पुत्रों की कथा
द्वापर युगकी बात है मन्दपाल नामका एक पक्षी था। उसके चार पुत्र थे, जो बड़े बुद्धिमान् थे। उनमें द्रोण सबसे छोटा था। वह बड़ा धर्मात्मा और वेद-वेदांगमें पारंगत था। उसने कन्धरकी अनुमतिसे उसकी पुत्री तार्क्षीसे विवाह किया। कुछ समय बाद तार्क्षी गर्भवती हुई और साढ़े तीन मासके पश्चात् वह कुरुक्षेत्र चली गयी। वहाँ वह भवितव्यतावश कौरवों और पाण्डवोंके भयंकर युद्धके बीच घुस गयी। तब अर्जुनके बाणसे उसकी खाल उधड़ गयी, जिससे उसका पेट फट गया और उसके चार अंडे अपनी आयु शेष रहनेके कारण पृथ्वीपर ऐसे गिरे मानो रुईकी ढेरपर गिरे हों। उनके गिरते ही राजा भगदत्तके सुप्रतीक नामक गजराजका विशाल घंटा, जिसकी जंजीर अर्जुनके ही बाणसे कटी थी, नीचे गिर पड़ा। उसने भूतलको विदीर्ण कर दिया और मांसकी ढेरपर पड़े तार्क्षीके उन अंडोंको चारों ओरसे ढक दिया।
युद्धकी समाप्तिके बाद शमीक ऋषि उस स्थानपर आ पहुँचे। वहीं उन्होंने उन पक्षि-शावकोंकी ची-चींकी ध्वनि सुनी। तब उन्होंने शिष्योंके साथ उस घंटेको ऊपर उठाया और उन अनाथ एवं अजातपक्ष पक्षि-शावकोको देखा। फिर तो उन्होंने शिष्योंसे कहा-'इन पक्षि-शावकोको आश्रममें ले चलो और इन्हें ऐसे स्थानपर रखो, जहाँ बिलाव आदिका भय न हो।'
मुनिकुमार पक्षि-शावकोको लेकर आश्रममें आये। वहाँ मुनिवर शमीकने प्रतिदिन भोजन, जल और संरक्षणके द्वारा उनका पालन-पोषण किया। एक मासमें ही वे सूर्यदेवके रथमार्गपर उड़ने लगे, जिन्हें कौतुकवश आँखें फाड़कर मुनिकुमार देखा करते थे।
जब उन पक्षि-शावकों ने नगरों से भरी, समुद्र से घिरी, नदियों वाली और रथके पहिये के समान पृथ्वीका परिभ्रमण कर लिया, तब वे आश्रममें लौट आये। उस समय ऋषि शमीक शिष्योंपर अनुकम्पा करके प्रवचनद्वारा धर्म-कर्मका निर्णय कर रहे थे। उन पक्षि-शावकोंने उनकी प्रदक्षिणा करके उनके चरणोंकी वन्दना की और कहा-'मुनिवर! आपने हमें भयंकर मृत्युसे मुक्त किया है, अतः आप हमारे पिता हैं और गुरु भी। जब हमलोग मांके पेटमें थे, तभी हमारी माँ मर गयी और पिताने भी हमारा पालन-पोषण नहीं किया। आपने हमें जीवनदान दिया है, जिससे हम बालक बचे हुए हैं। इस पृथ्वीपर आपका तेज अप्रतिहत है। आपने ही हाथीका घंटा उठाकर कीड़ोंकी भांति सूखते हुए हमलोगोंके कष्टोंका निवारण किया है।'
उन पक्षि-शावकोंकी ऐसी स्पष्ट शुद्ध वाणी सुनकर शमीक मुनिने उनसे पूछा-'ठीक-ठीक बताओ, तुम्हें यह मानव-वाणी कैसे मिली? साथ ही यह भी बताओ कि किसके शापसे तुममें रूप और वाणीका ऐसा परिवर्तन हो गया?'
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