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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


राजा  राज्यवर्धन पर भगवान् सूर्य की  कृपा


पूर्वकालमें दम नामक एक राजा थे, उनके पुत्रका नाम राज्थवर्धन था। वे भलीभांति पृथ्वीका पालन करते थे। उनके राष्ट्रमें धन-जन प्रतिदिन बढ़ रहा था। उनसे अन्य राजा और सम्पूर्ण राष्ट्र अत्यन्त प्रसन्न और संतुष्ट थे। उनका विवाह राजा विदूरथकी मानिनी नामकी कन्याके साथ हुआ था। किसी समय मानिनी राजसेवकोंके समक्ष ही राजाके सिरपर तेल लगा रही थी, उसी समय उसकी आँखोंसे आँसू गिर पड़े। वे अश्रुकण जब राजाके शरीरपर गिरे, तब उन्होंने मानिनीकी ओर देखा और पूछा-'मानिनि! क्यों रो रही हो?' पर उसने कुछ भी उत्तर न दिया। राज्यवर्धनने पुनः मानिनीसे जिज्ञासा की-'तुम क्यों रो रही हो?'

तब उस सुमध्यमाने कहा-'राजन्! मुझ मन्दभागिनीके शोकका कारण आपके केशोंके मध्य एक श्वेत केश है।' यह सुनकर राजा सभी उपस्थित राजगण और पौरजनोंके सम्मुख हँसते-हँसते पत्नीसे कहने लगे-'तुम रोओ मत! सभी प्राणियोंमें जन्म, वृद्धि और परिणाम आदि विकार लक्षित होते हैं, इसके लिये रोना व्यर्थ है।'

'हमने सभी वेदोंका अध्ययन, हजारों यज्ञोंका अनुष्ठान, पुत्रका उत्पादन, अतिशय दुर्लभ विषयोंका तुम्हारे साथ रहकर उपभोग, भलीभांति पृथ्वीका पालन तथा बाल्यावस्था और युवावस्थाके योग्य सभी कार्योंका सम्पादन किया है। अब वृद्धावस्थामें हमारा वनमें निवास करना कर्तव्य है।' तब समीपस्थ अन्य राजाओं और पुरवासियोने राजाको प्रणाम कर

विनयपूर्वक कहा-'राजन्! आपकी पत्नीका रोना तो निरर्थक है, किंतु हमलोगों अथवा सभी प्राणियोंके लिये यह रोनेका समय उपस्थित हो गया है। यदि आप वन जायँगे तो हमलोग भी साथमें ही प्रस्थान करेंगे। इसके फलस्वरूप पृथ्वीपर रहनेवालोंकी निश्चय ही श्रौत-स्मार्त सभी क्रियाएँ समाप्त हो जायँगी।' पर राजाने वनमें जानेका दृढ़ निश्चय कर दैवज्ञोंसे पुत्रके राज्याभिषेकके लिये शुभ मुहूर्त्तके विषयमें पूछा।

वे बोले-'राजन्! आप प्रसन्न हों और कृपा करके पहले जैसे हमलोगोंका रक्षण करते थे, वैसे ही रक्षण करें। भूप! आपके वन जानेसे सभी लोग दुःखी हो जायँगे। इसलिये राजन्! आप वैसा ही कार्य करें जिससे सभी प्राणी कष्टका अनुभव न करें। हमलोग आपसे शून्य इस सिंहासनको देखना नहीं चाहते।' इस प्रकार उन लोगों तथा अन्यान्य ब्राह्मणों, पुरवासियों, राजाओं, मन्त्रियों, मृत्योंके द्वारा पुनः-पुनः निवेदन करनेपर भी राजाने वनवासकी इच्छाका परित्याग न कर-'यमराज कभी भी क्षमा न करेगा' यही उत्तर दिया।

जब राजाने अपने वनवासके विचारका परित्याग नहीं किया तब ब्राह्मण, वृद्ध, पुरवासीगण, मन्त्री, सेवकवर्ग सब मिलकर विचार करने लगे कि अब क्या किया जाय। धर्मप्रवर राजाके प्रति प्रेमके कारण उन लोगोंने विचार कर यह निश्चय किया कि हमलोग भलीभांति ध्यानरत होकर तपस्याके द्वारा भगवान् भास्करकी आराधना करें और उनसे राजाके चिरजीवी होनेकी प्रार्थना करें।

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