लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ

पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

1 पाठक हैं

नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


राजा खनित्र का सद्भाव


पूर्वकालमें प्रांशु नामक एक चक्रवर्ती सम्राट् थे। इनके ज्येष्ठ पुत्रका नाम प्रजाति था। प्रजातिके खनित्र, शौरि, उदावसु सुनय, महारथ नामक पाँच पुत्र हुए। उनमें खनित्र ही अपने पराक्रमसे विख्यात राजा हुए थे। वे शान्त, सत्यवादी, शूर सब प्राणियोंके हितैषी, स्वधर्मपरायण, सर्वदा वृद्ध-सेवी, विजय-सम्पन्न और सर्वलोकप्रिय थे। वे सदा यही चाहते थे कि सब प्राणी आनन्दका उपभोग करें। उन्होंने प्रीतिपूर्वक भाइयोंको विभिन्न राज्योंमें प्रतिष्ठित कर स्वयं सागरस्वरूप वस्त्रसे मण्डित पृथ्वीका पालन करने लगे। उन्होंने शौरिको पूर्वप्रान्त, उदावसुको दक्षिणदेश, सुनयको पश्चिमदेश एवं महारथको उत्तरदेशके राज्यपदपर प्रतिष्ठित किया। खनित्र और उनके भाइयोंके राज्यमें विभिन्न गोत्रवाले मुनिगण पौरोहित्य-कर्मके लिये नियुक्त थे।

अत्रिकुलमें उत्पन्न सुहोत्र नामक द्विज शौरिके, गौतम-वंशमें उत्पन्न कुशावर्त उदावसुके, कश्यप-गोत्रमें उत्पन्न प्रमति राजा सुनयके तथा वसिष्ठ-गोत्रमें उत्पन्न वसिष्ठ राजा महारथके पुरोहित थे। ये चारों राजा अपने राज्योंका उपभोग करते थे और खनित्र उन सभी महीपतियोके अधीश्वर थे।

किसी समय शौरिके मन्त्री विश्ववेदीने अपने स्वामीसे कहा-'इस समय एकान्त है, इसलिये मैं कुछ कहना चाहता हूँ। यह समस्त पृथ्वी जिसके अधीन है, वह राजा और उसके पुत्र-पौत्रादि वंशधर ही सदा राजा होंगे। दूसरे भ्राताओंके अधिकारमें छोटे-छोटे राज्य हैं, जो पुत्रोंमें बँटकर छोटे होते जायँगे और अन्तमें उनके वंशधरोंको कृषिसे जीविका निर्वाह करनी पड़ेगी। राजन्! भाई कभी भाईका उद्धार करना नहीं चाहता, फिर भाईके

पुत्रोंपर स्नेह कहाँसे हो सकता है, अतः मेरी तो यही मन्त्रणा है कि आप ही पितृ-पितामहादिके राज्यका शासन कीजिये। मैं इसीके लिये प्रयत्नशील हूँ।'

यह सुनकर राजाने कहा-'मन्त्रिवर। वर्तमान महीपाल (खनित्र) हमारे बड़े भाई हैं और हम उनके अनुज हैं। इसीसे वे समस्त पृथ्वीका शासन करते हैं और हम छोटे-छोटे राज्योंका उपभोग करते हैं। महामते! हम पाँच भाई हैं और पृथ्वी तो एक ही है! फिर समग्र पृथ्वीके ऐश्वर्यका स्वतन्त्ररूपसे उपभोग करनेमें हम सभी कैसे समर्थ हो सकते हैं?'

मन्त्रीने कहा-'मेरा अभिप्राय यह है कि उस पृथ्वीको आप ही स्वीकार करें और सबके प्रधान बनकर पृथ्वीका शासन करें।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book