ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँस्वामी रामसुखदास
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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।
एक बार गौतमजीके आश्रममें देवर्षि नारदजी पधारे। वे वीणा बजाकर भगवतीके उत्तम गुणोंका गान कर रहे थे। वहाँ आकर वे पुण्यात्मा मुनियोंकी सभामें बैठ गये। गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियोंने उनका विधिवत् स्वागत-सत्कार किया। तत्पश्रात् नारदजीने कहा-'मुने! मैं देवसभामें गया था। वहाँ देवराज इन्द्रने आपकी प्रशंसा करते हुए कहा है कि मुनिने सबका भरण-पोषण करके विशाल निर्मल यश प्राप्त किया है। भगवती गायत्रीके कृपा-प्रसादसे तुम धन्यवादके पात्र बन गये हो।' ऐसा कहकर देवीकी स्तुति करके नारदजी वहाँसे चले गये।
उस समय वहाँ जितने भी ब्राह्मण थे, मुनिके द्वारा ही उन सबके भरण-पोषणकी व्यवस्था होती थी, परंतु उनमेंसे कुछ कृतझ ब्राह्मण गौतमजीके इस उत्कर्षको सुनकर ईर्ष्यासे जल उठे। तदनन्तर कुछ दिनोंके बाद धरापर वृष्टि भी होने लगी और धीरे-धीरे सम्पूर्ण देशमें सुभिक्ष हो गया। तब अपनी जीविकाके प्रति आश्वस्तमना उन द्वेषी ब्राह्मणोंने गौतमजीकी निन्दा एवं उन्हें शाप देनेके विचारसे एक मायाकी गौ बनायी, जो बहुत ही कृशकाय एवं मरणासन्न थी। जिस समय मुनिवर गौतमजी यज्ञशालामें हवन कर रहे थे, उसी क्षण वह गौ वहाँ पहुँची। मुनिने 'हुँ हुँ'-शब्दोंसे उसे वारण किया। इतनेमें ही उस गौके प्राण निकल गये। फिर तो उन दुष्ट ब्राह्मणोंने यह हल्ला मचा दिया कि गौतमने गौकी हत्या कर दी।
मुनिवर गौतमजी भी हवन समाप्त करनेके पश्चात् इस घटित घटनापर अत्यन्त आश्रर्य करने लगे। वे आँखें मूँदकर समाधिमें स्थित हो इसके कारणपर विचार करने लगे। उन्हें तत्काल पता लग गया कि यह सब उन द्वेषी ब्राह्मणोंका ही कुचक्र है। उस समय क्रोधसे भरे हुए प्रलयकालीन रुद्रके समान अत्यन्त तेजस्वी ऋषिवर गौतमने उन द्वेषी ब्राह्मणोंको शाप देते हुए कहा-'अरे अधम ब्राह्मणो! आजसे तुम सदाके लिये अधम बन जाओ। तुम्हारा वेदमाता गायत्रीके ध्यान और मन्त्र-जपमें कोई अधिकार न हो। गौ आदि दान और पितरोंके श्राद्धसे तुम विमुख हो जाओ। कृच्छ्, चान्द्रायण तथा प्रायश्चित्तव्रतमें तुम्हारा सदाके लिये अनधिकार हो जाय। तुमलोग पिता, माता, पुत्र, भाई, कन्या एवं भार्याका विक्रय करनेवाले व्यक्तिके समान नीचताको प्राप्त करो। अधम ब्राह्मणो! वेदका विक्रय करनेवाले तथा तीर्थ एवं धर्म बेचनेमें लगे हुए नीच व्यक्तियोंको जो गति मिलती है, वही तुम्हें प्राप्त हो। तुम्हारे वशमें उत्पन्न स्त्री एवं पुरुष मेरे दिये हुए शापसे दग्ध होकर तुम्हारे ही समान होंगे। गायत्री-नामसे प्रसिद्ध मूलप्रकृति भगवती जगदम्बाका अवश्य ही तुमपर महान् कोप है। अतएव तुम अन्धकूपादि नरकोंमें अनन्त कालतक निवास करो।'
इस प्रकार द्वेषी ब्राह्मणोंको वाणीद्वारा दण्ड देनेके पक्षात् गौतमजीने जचलसे आचमन किया। तदनन्तर शापसे दग्ध होनेके कारण उन ब्राह्मणोंने जितना वेदाध्ययन किया था, वह सब-का- सब विस्मृत हो गया। गायत्री-महामन्त्र भी उनके लिये अनभ्यस्त हो गया। तब इस भयानक स्थितिको प्राप्त करके वे सब अत्यन्त पश्चात्ताप करने लगे। फिर उन 'लोगोंने मुनिके सामने दण्डकी भांति पृथ्वीपर लेटकर उन्हें प्रणाम किया। लज्जाके कारण उनके सिर झुके हुए थे। वे बार-बार यही कह रहे थे-'मुनिवर! प्रसन्न होइये।' जब मुनि गौतमको चारों ओरसे घेरकर वे प्रार्थना करने लगे, तब दयालु मुनिका हृदय करुणासे भर गया। उन्होंने उन नीच ब्राह्मणोंसे कहा-'ब्राह्मणो! जबतक भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रका अवतार नहीं होगा, तबतक तो तुम्हें कुम्भीपाक नरकमें अवश्य रहना पड़ेगा; क्योंकि मेरा वचन मिथ्या नहीं हो सकता। इसके बाद तुमलोगोंका भूमण्डलपर कलियुगमें जन्म होगा। हाँ यदि तुम्हें शाप-मुक्त होनेकी इच्छा है तो तुम सबके लिये यह परम आवश्यक है कि भगवती गायत्रीके चरण-कमलकी सतत उपासना करो, उसीसे कल्याण होगा।
(देवीभागवतपुराण)
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