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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


गौतम ऋषि द्वारा कृतघ्न ब्राह्मणों को शाप

 

एक बार इन्द्रने लगातार पंद्रह वर्षोंतक पृथ्वीपर वर्षा नहीं की। इस अनावृष्टिके कारण घोर दुर्भिक्ष पड़ गया। सभी मानव क्षुधा-तृषासे पीड़ित हो एक-दूसरेको खानेके लिये उद्यत थे। ऐसी बुरी स्थितिमें कुछ ब्राह्मणोंने एकत्र होकर यह विचार किया कि 'गौतमजी तपस्याके बड़े धनी हैं। इस अवसरपर वे ही हम सबके दुःखोंको दूर करनेमें समर्थ हैं। वे मुनिवर इस समय अपने आश्रमपर गायत्रीकी उपासना कर रहे हैं। अतः हम सभीको उनके पास चलना चाहिये।'

ऐसा विचार कर वे सभी ब्राह्मण अपने अग्निहोत्रके सामान, कुटुम्ब, गोधन तथा दास-दासियोंको साथ लेकर गौतमजीके आश्रमपर गये। इसी विचारसे अनेक दिशाओंसे बहुतसे अन्य ब्राह्मण भी वहाँ पहुँच गये। ब्राह्मणोंके इस बड़े समाजको उपस्थित देखकर गौतमजीने उन्हें प्रणाम किया और आसन आदि उपचारोंसे उनकी पूजा की। कुशल-प्रश्रके अनन्तर उन्होंने उस सम्पूर्ण ब्राह्मणसमाजसे आगमनका कारण पूछा। तब सम्पूर्ण ब्राह्मणोंने अपना-अपना दुःख उनके सामने निवेदित किया। सारे समाचारको जानकर मुनिने उन सब लोगोंको अभय प्रदान करते हुए कहा-'विप्रो! यह आश्रम आपलोगोंका ही है। मैं सर्वथा आपलोगोंका दास हूँ। मुझ दासके रहते आपलोगोंको चिन्ता नहीं करनी चाहिये। संध्या और जपमें परायण रहनेवाले आप सभी द्विजगण सुखपूर्वक मेरे यहाँ रहनेकी कृपा करें।' इस प्रकार ब्राह्मण-समाजको आश्वासन देकर मुनिवर गौतमजी भक्ति-विनम्र हो वेदमाता गायत्रीकी स्तुति करने लगे। गौतमजीके स्तुति करनेपर भगवती गायत्री उनके सामने प्रकट हो गयीं।

ऋषि गौतमपर प्रसन्न होकर भगवती गायत्रीने उन्हें एक ऐसा पूर्णपात्र दिया, जिससे सबके भरण-पोषणकी व्यवस्था हो सकती थी। उन्होंने मुनिसे कहा-'मुने! तुम्हें जिस-जिस वस्तुकी इच्छा होगी, मेरा दिया हुआ यह पात्र उसे पूर्ण कर देगा।' यों कहकर श्रेष्ठ कला धारण करनेवाली भगवती गायत्री अन्तर्धान हो गयीं। महात्मा गौतम जिस वस्तुकी इच्छा करते थे, वह देवी गायत्रीद्वारा दिये हुए पूर्णपात्रसे उन्हें प्राप्त हो जाती थी। उसी समय मुनिवर गौतमजीने सम्पूर्ण मुनिसमाजको बुलाकर उन्हें प्रसन्नतापूर्वक धन-धान्य, वस्त्राभूषण आदि समर्पित किया। उनके द्वारा गवादि पशु तथा स्त्राक्-स्त्रुवा आदि यज्ञकी सामग्रियाँ जो सब-की-सब भगवती गायत्रीके पूर्णपात्रसे निकली थीं, आये हुए ब्राह्मणोंको प्राप्त हुईं। तत्पश्चात् सभी लोग एकत्र होकर गौतमजीकी आज्ञासे यज्ञ करने लगे। इस प्रकार भयंकर दुर्भिक्षके समयमें भी गौतमजीके आश्रमपर नित्य उत्सव मनाया जाता था। न किसीको रोगका किंचिन्मात्र भय था, न असुरोंके उत्पातादिका ही। गौतमजीका वह आश्रम चारों ओरसे सौ-सौ योजनके विस्तारमें था। धीरे-धीरे अन्य बहुतसे लोग भी वहाँ आये और आत्मज्ञानी मुनिवर गौतमजीने सभीको अभय प्रदान करके उनके भरण-पोषणकी व्यवस्था कर दी। उन ऋषिश्रेष्ठके द्वारा अनेक यज्ञोंके सम्पादित किये जानेपर यज्ञ-भाग पाकर संतुष्ट हुए देवताओंने भी गौतमजीके यशकी पर्याप्त प्रशंसा की।

इस प्रकार मुनिवर गौतमजी बारह वर्षोंतक श्रेष्ठ मुनियोंके भरण-पोषणकी व्यवस्था करते रहे, तथापि उनके मनमें कभी लेशमात्र भी अभिमान नहीं हुआ। उन्होंने अपने आश्रममें ही गायत्रीकी आराधनाके लिये एक श्रेष्ठ स्थानका निर्माण करवा दिया था, जहाँ सभी लोग जाकर भगवती जगदम्बा गायत्रीकी उपासना करते थे।

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