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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


विष्णुप्रिया तुलसी


पद्म, शिव, स्कन्द एवं श्रीमद्देवीभागवत आदि पुराणोंके अनुसार तुलसीका जन्म दक्षसावर्णि मनु के वंशज धर्मध्वज के यहाँ शुभ दिन, योग, करण, लग्न और ग्रहमें कार्तिक पूर्णिमाको हुआ था। वह अपूर्व सुन्दरी थी। अल्पावस्थामें ही तुलसी बदरीवनमें जाकर भगवान् नारायणको पतिरूपमें प्राप्त करने के लिये तपस्या करने लगी। दीर्घकालीन तपस्याके उपरान्त ब्रह्माजीने उसे दर्शन दिया तथा मनोऽभिलषित वर माँगनेके कहा। तुलसीने निवेदन किया कि 'पितामह! यद्यपि आप सर्वज्ञ हैं तथापि मैं अपने मनकी अभिलाषा आपसे कहती हूँ। पूर्वजन्ममें मैं गोपी थी, मुझे भगवान् श्रीकृष्णकी अनुचरी होनेका सौभाग्य प्राप्त था, किंतु एक दिन भगवती राधाने रासमण्डलमें कुद्ध हो मुझे मानव-योनिमे उत्पन्न होनेका शाप दे दिया, उसी कारणसे अब मैं इस भूमण्डलपर उत्पन्न हुई हूँ। सुन्दर विग्रहवाले भगवान् नारायण उस समय मेरे पति थे, उन्हींको मैं अब भी पतिरूपमें प्राप्त करना चाहती हूँ।'

ब्रह्माजीने बताया कि 'सुदामा नामक गोप जो नारायणका पार्षद था, श्रीराधिकाजीके शापसे भूमण्डलमें उत्पन्न हुआ है और वह इस समय शंखचूड़ नामसे प्रसिद्ध है। वह भगवान् श्रीकृष्णका ही अंश है, जो तुम्हारा प्रथम पति होगा। तत्पश्चात् भगवान् नारायण तुम्हें पत्नीरूपमें अंगीकार करेंगे।'

दनुकुलमें उत्पन्न शंखचूड़ महान् योगी था। एक बार वह बदरीवनमें आया। उसे जैगीषव्य मुनिकी कृपासे भगवान् श्रीकृष्णका मनोहर मन्त्र प्राप्त था। ब्रह्माजीने भी उसे अभिलषित वर देकर यहाँ आनेकी आज्ञा दी थी। संयोगवश तुलसीकी दृष्टि उसपर पड़ गयी। दोनों परस्पर वार्तालापमें संलग्न हुए ही थे कि ब्रह्माजीने प्रकट होकर दोनोंको दाम्पत्यसूत्रमें बँधनेका आदेश दिया। शंखचूड़ तुलसीसे गान्धर्वविवाह कर उसे अपने भवनमें ले गया तथा आनन्दपूर्वक रहने लगा।

अपनी धर्मपत्नी परम सुन्दरी तुलसीके साथ शंखचूड़ने दीर्घकालतक राज्य किया। उसका शासन देवता, दानवादि सभी मानते थे, किंतु देवतागण अपना अधिकार छिन जानेसे भिक्षुककी-सी स्थितिमें थे। वे ब्रह्मा तथा शंकरको आगेकर श्रीहरिके पावन धाम वैकुण्ठ गये तथा उनकी स्तुति कर, विनयशील होकर भगवान् श्रीहरिसे सारी परिस्थिति बतायी। सर्वज्ञ भगवान् श्रीहरिने देवताओंको शंखचूड़के जन्मका अद्धृत रहस्य बताया और कहा कि महान् तेजस्वी शंखचूड़ पूर्वजन्ममें मेरा ही अंश एक गोप था, जिसे राधिकाजीके शापके कारण यह योनि मिली है, परंतु अपने समयपर शंखचूड़ पुनः गोलोक चला जायगा।

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