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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


भक्त का अद्भुत अवदान

(भक्त गयासुर की कथा)


कीचसे जैसे कमल उत्पन्न होता है, वैसे ही असुर-जातिमे भी कुछ भक्त उत्पन्न हो जाते हैं। भक्तराज प्रह्लादका नाम प्रसिद्ध है। गयासुर भी इसी कोटिका भक्त था। बचपनसे ही गयका हृदय भगवान् विष्णुके प्रेममें ओतप्रोत रहता था। उसके मुखसे प्रतिक्षण भगवान् के नामका उच्चारण होता रहता था।

गयासुर बहुत विशाल था। उसने कोलाहल पर्वतपर घोर तप किया। हजारों वर्षतक उसने साँस रोक ली जिससे सारा संसार क्षुब्ध हो गया। देवताओंने ब्रह्मासे प्रार्थना की कि 'आप गयासुरसे हमारी रक्षा करें।' ब्रह्मा देवताओंके साथ भगवान् शंकरके पास पहुँचे। पुनः सभी भगवान् शंकरके साथ विष्णुके पास पहुँचे। भगवान् विष्णुने कहा-'आप सब देवता गयासुरके पास चलें, मैं भी आ रहा हूँ।'

गयासुरके पास पहुँचकर भगवान् विष्णुने पूछा-'तुम किसलिये तप कर रहे हो? हम सभी देवता तुमसे संतुष्ट हैं, इसलिये तुम्हारे पास आये हुए हैं। वर माँगो।'

गयासुरने कहा-'मेरी इच्छा है कि मैं सभी देव, द्विज, यज्ञ, तीर्थ, ऋषि, मन्त्र और योगियोंसे बढ़कर पवित्र हो जाऊँ।' देवताओंने प्रसन्नतापूर्वक गयासुरको वरदान दे दिया। फिर वे प्रेमसे उसे देखकर और उसका स्पर्श कर अपने-अपने लोकोंमें चले गये। इस तरह भक्तराज गयने अपने शरीरको पवित्र बनाकर प्रायः सभी पापियोंका उद्धार कर दिया। जो उसे देखता और जो उसका स्पर्श करता उसका पाप-ताप नष्ट हो जाता। इस तरह नरकका दरवाजा ही बंद हो गया।

भगवान् विष्णुने अपने भक्तके पवित्र शरीरका उपयोग सदाके लिये करना चाहा। किसीका शरीर तो अमर रह नहीं सकता। गयके उस पवित्र शरीरके पातके बाद प्राणियोंको उसके शरीरसे वह लाभ नहीं मिलता, अतः भगवान् ने ब्रह्माको भेजकर उसके शरीरको मँगवा लिया। गयासुर अतिथिके रूपमें आये हुए ब्रह्माको पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपने जन्म और तपस्याको सफल माना। ब्रह्माने कहा-'मुझे यज्ञ करना है। इसके लिये मैंने सारे तीर्थोंको ढूँढ़ डाला, परंतु मुझे ऐसा कोई तीर्थ नहीं प्राप्त हुआ जो तुम्हारे शरीरसे बढ़कर पवित्र हो, अतः यज्ञके लिये तुम अपना शरीर दे दो।' यह सुनकर गयासुर बहुत प्रसन्न हुआ और वह कोलाहल पर्वतपर लेट गया।

ब्रह्मा यज्ञकी सामग्रीके साथ वहाँ पधारे। प्रायः सभी देवता और ऋषि भी वहाँ उपस्थित हुए। गयासुरके शरीरपर बहुत बड़ा यज्ञ हुआ। ब्रह्माने पूर्णाहुति देकर अवभृथ-स्नान किया। यज्ञका यूप (स्तम्भ) भी गाड़ा गया।

भक्तराज गयासुर चाहते थे कि उसके शरीरपर सभी देवताओंका वास हो। भगवान् विष्णुका निवास गयासुरको अधिक अभीष्ट था, इसलिये उसका शरीर हिलने लगा। जब सभी देवता उसपर बस गये और भगवान् विष्णु गदाधरके रूपमें वहाँ स्थित हो गये, तब भक्तराज गयासुरने हिलना बंद कर दिया। तबसे गयासुर सबका उद्धार करता आ रहा है। यह एक भक्तका विश्व के कल्याण के लिये अद्भुत अवदान है।

(वायुपुराण)


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