ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँस्वामी रामसुखदास
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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।
जब गुणनिधिको इस घटनाका पता चला तब उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। वह अपनी माताके उपदेशोंका स्मरण कर शोक करने लगा तथा अपने कुकर्मोंके कारण अपनेको धिक्कारने लगा और पिताके भयसे घर छोड़कर भाग गया, परंतु जीविकाका कोई भी साधन न होनेसे जंगलमें जाकर रुदन करने लगा।
इसी समय एक शिवभक्त विविध प्रकारकी पूजन-सामग्रियोंसे युक्त हो अपने साथ अनेक शिवभक्तोंको लेकर जा रहा था। उस दिन सभी व्रतोंमें उत्तम तथा सभी वेदों एवं शास्त्रोंद्वारा वर्णित शिवरात्रि-व्रतका दिन था। उसीके निमित्त वे भक्तगण शिवालयमें जा रहे थे। उनके साथ ले जाये गये विविध पक्वान्नों की सुगन्ध से गुणनिधि की भूख बढ़ गयी। वह उनके पीछे-पीछे इस उद्देश्यसे शिवालयमें चला गया कि जब ये लोग भोजनको शिवजीके निमित्त अर्पण कर सो जायँगे तब मैं उसे ले लूँगा।
उन भक्तोंने शिवजीका षोडशोपचार पूजन किया तथा नैवेद्य अर्पित करके वे शिवजीकी स्तुति करने लगे। कुछ देर बाद उन भक्तोंको नींद आ गयी, तब छिपकर बैठे हुए गुणनिधिने भोजन उठा लिया, परंतु लौटते समय उसका पैर लगनेसे एक शिवभक्त जाग गया और वह चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगा।
गुणनिधि जान बचाकर भागा, परंतु एक नगररक्षक ने उसे अपने तीरसे मार गिराया। तदुपरान्त उसे लेनेके लिये बड़े भयंकर यमदूत आये और उसे ले जाने लगे। तभी भगवान् शिवने अपने गणोंसे कहा कि इसने मेरा परमप्रिय शिवरात्रिका व्रत तथा रात्रि-जागरण किया है, अतः इसे यमगणों से छुड़ा लाओ।
यमगणों के विरोध करने पर शिवगणों ने उन्हें शिवजीका संदेश सुनाया और उसे छुड़ाकर शिवजीके पास ले गये। शिवजीके अनुग्रहसे वह महान् शिवभक्त कलिंगदेशका राजा हुआ। वही अगले जन्म में भगवान् शंकर तथा माँ पार्वती के कृपाप्रसाद से यक्षों का अधिपति कुबेर हुआ।
(शिवपुराण)
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