लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ

पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

1 पाठक हैं

नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


गुणनिधि पर भगवान् शिव की कृपा


पूर्वकाल में यज्ञदत्त नामक एक ब्राह्मण थे। समस्त वेद-शास्त्रादि का ज्ञाता होने से उन्होंने अतुल धन एवं कीर्ति अर्जित की थी। उनकी पत्नी सर्वगुणसम्पन्न थी। कुछ दिनोंके बाद उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा गया।

बाल्यावस्थामें इस बालकने कुछ दिन तो धर्मशास्त्रादि समस्त विद्याओंका अध्ययन किया, परंतु बादमें वह कुसंगतिमें पड़ गया। कुसंगतिके प्रभावसे वह धर्मविरुद्ध कार्य करने लगा वह अपनी मातासे द्रव्य लेकर जूआ खेलने लगा और धीरे-धीरे अपने पिता द्वारा अर्जित धन तथा कीर्तिको नष्ट करने लगा। कुसंगतिके प्रभावसे उसने स्नान-संध्या आदि कार्य ही नहीं छोड़ा, अपितु शास्त्र-निन्दकोके साथ रहकर वह चोरी, परस्त्रीगमन, मद्यपानादि कुकर्म भी करने लगा, परंतु उसकी माता पुत्र-स्नेहवश न तो उसे कुछ कहती थी और न उसके पिताको ही कुछ बताती। इसीलिये यज्ञदत्तको कुछ भी पता नहीं चला। जब उनका पुत्र सोलह वर्षका हो गया तब उन्होंने बहुत धन खर्च करके एक शीलवती कन्यासे गुणनिधि का विवाह कर दिया, परंतु फिर भी उसने कुसंगतिको न छोड़ा उसकी माता उसे बहुत समझाती थी कि तुम कुसंगतिको त्याग दो, नहीं तो यदि तुम्हारे पिताको पता लग गया तो अनिष्ट हो जायगा। तुम अच्छी संगति करो तथा अपनी पत्नीमें मन लगाओ। यदि तुम्हारे कुकर्मोंका राजाको पता लग गया तो वह हमें धन देना बंद कर देगा और हमारे कुलका यश भी नष्ट हो जायगा, परंतु बहुत समझानेपर भी वह नहीं सुधरा, अपितु उसके अपराध और बढ़ते ही गये। उसने वेश्यागमन तथा द्यूतक्रीड़ामें घरकी समस्त सम्पत्ति नष्ट कर दी।

एक दिन वह ऊपनी सोती हुई मांके हाथसे अँगूठी निकाल ले गया और उसे जुएमें हार गया। अकस्मात् एक दिन गुणनिधिके पिता यज्ञदत्तने उस अँगूठीको एक जुआरीके हाथमें देखा, तब उन्होंने उससे डाँटकर पूछा-'तुमने यह अगूँठी कहाँसे ली?'

जुआरी डर गया और उसने गुणनिधिके सम्बन्धमें सब कुछ सत्य-सत्य बता दिया। जुआरीसे अपने पुत्रके विषयमें सुनकर यज्ञदत्तको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे लज्जासे व्याकुल होते हुए घर आये और उन्होंने अँगूठीके सम्बन्धमें प्राप्त हुई गुणनिधिके विषयकी सारी बातें अपने पत्नीसे कही। माताने गुणनिधिको बचानेका प्रयास किया, किंतु यज्ञदत्त क्रोधसे भर उठे और बोले कि 'मेरे साथ तुम भी अपने पुत्रसे नाता तोड़ लो तभी मैं भोजन करूँगा।' पतिकी बात सुनकर वह उनके चरणोंपर गिर पड़ी और गुणनिधिको एक बार क्षमा कर देनेकी प्रार्थना की, जिससे यज्ञदत्तका क्रोध कुछ कम हो गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book