लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


बड़ों को बता दिया और पुनः वैसा न करने का आश्वासन दिया। प्रयाश्चित में बाबा ने कहा कि मेरे इस कर्म से जिसको हानि पहुँची है, उसकी विनीत भाव में सेवा करूँ। मैंने दीदी के अधिकार पर डाका डाला था और उसी को सेवा करने लगी।

‘‘सबसे पहले दीदी ने ही क्षमा किया; तदनन्तर माता-पिता ने।

और अब तो आपने भी क्षमा कर रखा है।’’

‘‘बाबा की प्रशंसा बहुत करती हो। क्या गुण था उनमें?’’

‘‘उनकी वाणी में रस था, प्रभाव था और समाधान करने की युक्ति थी। वह एक कथा सुनाते थे और दीदी और मैं उस कथा को लेखनी-बद्ध करती रहती थीं। वह एक बृहद् ग्रन्थ बन गया है।’’

‘‘कहाँ है वह ग्रन्थ?’’

‘‘वह जीजाजी की माताजी के घर पर है। उन्होंने बाबा की स्मृति में रखा हुआ है।

‘‘पिछले वर्ष जब मैं बिलासपुर में गयी थी तो मैंने उनसे वह ग्रन्थ प्रकाशित करवाने के लिये माँगा था, परन्तु उन्होंने कहा था कि ग्रन्थ में बहुत-सी परिवार-सम्बन्धी बातें हैं, इस कारण वह उसको प्रकाशित करवाना नहीं चाहतीं।’’

‘‘परन्तु उसका ठीक प्रकार से सम्पादन किया जाये तो परिवार सम्बन्धी बातें निकाली भी जा सकती है।’’ कुलवन्तसिंह ने कहा।

‘‘हाँ। उनको कहूँगी। परन्तु मेरा और दीदी का यह कहना है कि अमृतलालजी के विषय में अधिक व्याख्या से पता चल जाये तो हम विश्वास से जान जायेंगी कि वह मेरे जीजाजी हैं अथवा नहीं। यदि यह वही हैं तो उनकी माताजी को लिख देना चाहिये जिससे वह अपना खोया हुआ पुत्र पा जायें।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book