ई-पुस्तकें >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
यह स्पष्ट है कि मनुष्य
के लिए एक जाति से दूसरी जाति में चला जाना संभव
है। यदि नहीं, तो विश्वामित्र ब्राह्मण कैसे बन सके? ब्राह्मण का पुत्र
सर्वदा ब्राह्मण ही नहीं होता यद्यपि उसके ब्राह्मण होने की संभावना अवश्य
होती है। शिक्षा और अधिकार के तारतम्य के अनुसार सभ्यता सीखने की सीढ़ी थी
वर्णविभाग। यूरोप में बलवानों की जय और निर्बलों की मृत्यु होती है। भारत
में प्रत्येक सामाजिक नियम दुर्बलों की रक्षा करने के लिए ही बनाया गया है।
विभिन्न श्रेणियों में
विभक्त होना ही समाज का स्वभाव है। पर रहेगा क्या
नहीं? - विशेष अधिकारों का अस्तित्व न रह जायगा। जातिविभाग प्राकृतिक नियम
है। सामाजिक जीवन में एक विशेष काम मैं कर सकता हूं, तो दूसरा काम तुम कर
सकते हो। तुम एक देश का शासन कर सकते हो तो मैं एक पुराने जूते की मरम्मत
कर सकता हूँ किंतु इस कारण तुम मुझसे बड़े नहीं हो सकते - क्या तुम मेरे
जूते की मरम्मत कर सकते हो? .. तुम वेदपाठ में निपुण हो। यह कोई कारण नहीं
कि तुम इस विशेषता के लिए मेरे सिर पर पाँव रखो। तुम यदि हत्या भी करो तो
तुम्हारी प्रशंसा और मुझे एक सेब चुराने पर ही फाँसी पर लटकना हो, ऐसा
नहीं हो सकता। इसको समाप्त करना ही होगा। यदि मनुष्य को तुम वेदांत
सिखलाओगे तो वह कहेगा, हम और तुम दोनों बराबर हैं। तुम दार्शनिक हो, मैं
मछुआ; पर इससे क्या? तुम्हारे भीतर जो ईश्वर है, वही मुझमें भी है। हम यही
चाहते हैं कि किसी को कोई विशेष अधिकार प्राप्त न हो, और प्रत्येक मनुष्य
की उन्नति के लिए समान सुभीते हों! सब लोगों को उनके भीतर स्थित ब्रह्मत्व
संबंधी शिक्षा दो। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मुक्ति के लिए स्वयं चेष्टा
करेगा।
यह एक विशेष रूप से ध्यान
देने योग्य बात है कि प्राचीन भारत ने जिन दो
सर्वश्रेष्ठ पुरुषों को जन्म दिया था, वे दोनों ही क्षत्रिय हैं - वे थे
कृष्ण और बुद्ध। और यह उससे भी अधिक ध्यान देने योग्य बात है कि इन दोनों
ही देवमानवों ने लिंग और जातिभेद को न मानकर सब के लिए ज्ञान का द्वार
उन्मुक्त कर दिया था।
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