ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
74. बचपन की अनुभूति
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।
मैंने इसे सहेजा जैसे पलक सहेजें पुतरी।।
बरसों साथ किसी के देखा
मंदिर वाला मेला।
बरसों साथ किसी के पनघट-
नदिया-तट पर खेला।
पता नहीं कब हुई दोपहर और साँझ कब गहरी।
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।।
अपने मुख से कहती हैं ये
बीती हुई कहानी।
अलमारी में मिली चिट्ठियां
मुझको बहुत पुरानी।
कुछ की पड़ी लिखावट फीकी कुछ चूहों ने कुतरी।
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।।
जब-जब मन के कैनवास पर
सुधि ने चित्र बनाया।
तब-तब मैंने सोचा- अब तक
क्या खोया- क्या पाया।
इसी सोच में प्राण लाँघने लगे देह की देहरी।
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।।
मैंने इसे सहेजा जैसे पलक सहेजें पुतरी।।
बरसों साथ किसी के देखा
मंदिर वाला मेला।
बरसों साथ किसी के पनघट-
नदिया-तट पर खेला।
पता नहीं कब हुई दोपहर और साँझ कब गहरी।
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।।
अपने मुख से कहती हैं ये
बीती हुई कहानी।
अलमारी में मिली चिट्ठियां
मुझको बहुत पुरानी।
कुछ की पड़ी लिखावट फीकी कुछ चूहों ने कुतरी।
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।।
जब-जब मन के कैनवास पर
सुधि ने चित्र बनाया।
तब-तब मैंने सोचा- अब तक
क्या खोया- क्या पाया।
इसी सोच में प्राण लाँघने लगे देह की देहरी।
बचपन की अनुभूति डायरी के पन्नों पर उतरी।।
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