ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
65. जो हम सोचें वो तुम सोचो
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।
ऐसा लगता है- एक लक्ष्य हम दोनों के जीवन का है।।
हम जब भी सूरज की सोचें
तुम भी सोचो दिन की बातें।
हम सोचें चंदा-तारों की
तुम सोचो पूनम की रातें।
ऐसा लगता है- अपना तो सम्बन्ध सोच-चिन्तन का है।
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।।
हम सोचें- तुमसे मिलने की
तुम मिलने को आ जाते हो।
हम सोचें- गीत ग़ज़ल गाओ
तुम गीत- ग़ज़ल भी गाते हो।
ऐसा लगता है हमको- यह परिणाम किसी बंधन का है।
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।।
अब सोच रहे- क्या सोचें हम
जो सोचेंगे, तुम सोचोगे।
हम ख़ुश होंगे, तुम ख़ुश होगे
गुमसुम होंगे, गुमसुम होगे।
ऐसा लगता है- सचमुच ही यह रिश्ता अपनेपन का है।
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।।
ऐसा लगता है- एक लक्ष्य हम दोनों के जीवन का है।।
हम जब भी सूरज की सोचें
तुम भी सोचो दिन की बातें।
हम सोचें चंदा-तारों की
तुम सोचो पूनम की रातें।
ऐसा लगता है- अपना तो सम्बन्ध सोच-चिन्तन का है।
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।।
हम सोचें- तुमसे मिलने की
तुम मिलने को आ जाते हो।
हम सोचें- गीत ग़ज़ल गाओ
तुम गीत- ग़ज़ल भी गाते हो।
ऐसा लगता है हमको- यह परिणाम किसी बंधन का है।
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।।
अब सोच रहे- क्या सोचें हम
जो सोचेंगे, तुम सोचोगे।
हम ख़ुश होंगे, तुम ख़ुश होगे
गुमसुम होंगे, गुमसुम होगे।
ऐसा लगता है- सचमुच ही यह रिश्ता अपनेपन का है।
जो हम सोचें वो तुम सोचो यह कैसा संगम मन का है।।
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