ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
35. मन करता है साथ तुम्हारे
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।
पर न समझ में आये कैसे हम शुरुआत करें?
कभी सोचते- अपनी बातें
क्या तुमको भायेंगी?
कभी सोचते- क्या ये तुमको
पीड़ा पहुँचायेंगी?
दुविधा की ये स्थितियाँ मन पर आघात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।।
एक राह पर चले ज़िन्दगी
तो यह भार न होगी।
दो नावों पर पाँव धरेंगे
नदिया पार न होगी।
जब दिमाग़ इतना सोचे तो क्या ज़ज़्बात करें?
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।।
कब कहते हम इतने अच्छे
हमें देवता मानो।
मगर आदमी कैसे हैं हम
इतना तो पहचानो।
पहचानो तो साथ तुम्हारा हम दिन-रात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।।
पर न समझ में आये कैसे हम शुरुआत करें?
कभी सोचते- अपनी बातें
क्या तुमको भायेंगी?
कभी सोचते- क्या ये तुमको
पीड़ा पहुँचायेंगी?
दुविधा की ये स्थितियाँ मन पर आघात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।।
एक राह पर चले ज़िन्दगी
तो यह भार न होगी।
दो नावों पर पाँव धरेंगे
नदिया पार न होगी।
जब दिमाग़ इतना सोचे तो क्या ज़ज़्बात करें?
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।।
कब कहते हम इतने अच्छे
हमें देवता मानो।
मगर आदमी कैसे हैं हम
इतना तो पहचानो।
पहचानो तो साथ तुम्हारा हम दिन-रात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें-बात करें।।
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