ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
33. रोज़ सवेरे
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।
पर खुलते ही आँख कहाँ गायब हो जाते हो?
सब कहते हैं- भोर पहर का
सपना होता सच्चा।
इसीलिये यह सपना मुझको
लगता सबसे अच्छा।
पल भर में दिन भर को कितना सहज बनाते हो।
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।।
फिर ख़्वाबों के इन्तज़ार में
बीते शाम सुहानी।
मन गढ़ता रहता है हर पल
कोई नयी कहानी।
लेकिन सबमें मुख्य भूमिका तुम्हीं निभाते हो।
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।।
कोई ख़्वाब अभी तक उसने
छोड़ा नहीं अधूरा।
मुझको लगता- यह सपना भी
हो जायेगा पूरा।
शायद इसीलिये तुम मुझको रोज़ रिझाते हो।
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।।
पर खुलते ही आँख कहाँ गायब हो जाते हो?
सब कहते हैं- भोर पहर का
सपना होता सच्चा।
इसीलिये यह सपना मुझको
लगता सबसे अच्छा।
पल भर में दिन भर को कितना सहज बनाते हो।
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।।
फिर ख़्वाबों के इन्तज़ार में
बीते शाम सुहानी।
मन गढ़ता रहता है हर पल
कोई नयी कहानी।
लेकिन सबमें मुख्य भूमिका तुम्हीं निभाते हो।
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।।
कोई ख़्वाब अभी तक उसने
छोड़ा नहीं अधूरा।
मुझको लगता- यह सपना भी
हो जायेगा पूरा।
शायद इसीलिये तुम मुझको रोज़ रिझाते हो।
रोज़ सवेरे तुम घर मेरे दिलबर आते हो।।
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