ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
26. कितनी प्रीति हमारी गहरी
मन को झंकृत करे तुम्हारी प्यार भरी स्वर-लहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
तुमने मुझे बसंत कहा तो
खिली हृदय की कलियाँ।
मधुर कल्पना की आ बैठीं
उन पर ढेर तितलियाँ।
रंग-बिरंगी दिखें पन्नियाँ ज्यों उत्सव में फहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
तुमने मुझको सिंधु कहा तो
उठीं हृदय में लहरें।
प्यार भरी लहरें सागर के
मन में कब तक ठहरें।
आओ नदिया सी मिल जाओ दिन हो या दोपहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
जो भी तुम कहती हो उसमें
प्यार छिपा होता है।
प्यार छिपा होता है मन का
सार छिपा होता है।
प्रीति किसी के मन में छिपकर कितने दिन तक ठहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
तुमने मुझे बसंत कहा तो
खिली हृदय की कलियाँ।
मधुर कल्पना की आ बैठीं
उन पर ढेर तितलियाँ।
रंग-बिरंगी दिखें पन्नियाँ ज्यों उत्सव में फहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
तुमने मुझको सिंधु कहा तो
उठीं हृदय में लहरें।
प्यार भरी लहरें सागर के
मन में कब तक ठहरें।
आओ नदिया सी मिल जाओ दिन हो या दोपहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
जो भी तुम कहती हो उसमें
प्यार छिपा होता है।
प्यार छिपा होता है मन का
सार छिपा होता है।
प्रीति किसी के मन में छिपकर कितने दिन तक ठहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीति हमारी गहरी।।
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