ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
मन के गीतों को भी लोग सुनें...
'एक हास्य-व्यंग्य कवि का गीत संग्रह' सुनने में थोड़ा अटपटा तो लगता है पर अब तो आ ही गया है आपके सामने। मैं अपनी गीत-यात्रा के बारे में बताऊँ तो शायद यह अटपटापन स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।
सितंबर 1984 'कविकुल' द्वारा सेंट्रल पार्क, शास्त्री नगर, कानपुर में एक कवि गोष्ठी का आयोजन कृष्णानंद चौबे जी के सान्निध्य में। मेरे लिए किसी कवि गोष्ठी में भाग लेने का पहला अवसर। मेरे द्वारा एक गीत और एक व्यंग्य रचना का पाठ। गीत को कोई खास तवज्जो नहीं। व्यंग्य रचना की अप्रत्याशित सराहना। बस गोष्ठी से शुरू हुई व्यंग्य-यात्रा मंचों तक पहुँच गयी लेकिन गीत-यात्रा भी रुकी नहीं। भले धीमी गति से सही पर डायरी से होती हुई यह यात्रा न केवल पत्र-पत्रिकाओं तक पहुँची वरन् अनेक समवेत गीत-संकलनों और साहित्यिक वार्षिकियों में भी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही। यह क्रम आज भी जारी है।
जहाँ एक ओर डॉ॰ सेवक वात्स्यायन जी, डॉ॰ उपेन्द्र जी, डॉ॰ गणेश शंकर शुक्ल 'बंधु' जी, धर्मपाल अवस्थी जी, सुमन दुबे जी, शिव कुमार सिंह कुँवर जी जैसे आचार्यों ने मेरे गीतों को अपना स्नेहाशीष दिया। वहीं दूसरी ओर कुछ गीतों को डॉ॰ सूर्य प्रसाद शुक्ला जी, डी॰लिट् और डॉ॰ नारायणी शुक्ला ने अपनी शोध कृतियों में शामिल करके तथा डॉ॰ विनोद त्रिपाठी ने सम्मानित करके मेरी गीत-यात्रा को गतिशीलता प्रदान की। कवि सम्मेलनीय यात्राओं में जब भी सोम ठाकुर जी, डॉ॰ कुँअर बेचैन जी, डॉ॰ बुद्धिनाथ मिश्र जी, कैलाश गौतम जी, मनोहर मनोज जी और डॉ॰ शिवओम अम्बर जी जैसे सुधी साहित्यकारों का सान्निध्य मिला तो मैंने उन्हें अपने गीत सुनाकर आशीष लेने का कोई मौका कभी नहीं छोड़ा। ए॰ बी॰ लाल श्रीवास्तव जी, निशंक वाजपेई जी, श्याम सुन्दर निगम जी, सुधीर निगम जी, डॉ॰ नरेश कात्यायन जी, सुधांशु उपाध्याय जी, यश मालवीय जी, राजेश राज जी, मुनेन्द्र शुक्ला जी, विनोद तरुण जी, अंसार कम्बरी जी, शैलेन्द्र शर्मा जी, के॰ के॰ शुक्ला जी, सुनील बाजपेयी जी, विनोद श्रीवास्तव जी, राघवेन्द्र भदौरिया जी, पंकज परदेशी जी, सत्य प्रकाश शर्मा जी, देवेन्द्र सफल जी, मृदुल तिवारी जी, जयराम सिंह 'जय' जी, राजेंद्र तिवारी जी, रामकृष्ण 'प्रेमी' जी, के. के. पाण्डेय ज्ञानी जी, डॉ॰ अंजनी सरीन जी, डॉ॰ शशि शुक्ला जी आदि जैसे अनेक स्नेही जनों ने इन गीतों को जब भी सुना तो सराहा। मेरी हास्य-व्यंग्य विधा के ओमनारायण शुक्ला जी, प्रबुद्ध तिवारी जी, के॰ के॰ अग्निहोत्री जी, दीप शर्मा जी, भाई चक्रधर शुक्ला, राघवेन्द्र त्रिपाठी, दुर्गा बाजपेई और श्रवण शुक्ला आदि ने भी मेरे गीतों को स्नेह-सम्मान दिया। इस संग्रह के कई गीतों को 'नवनीत' के संपादक डॉ॰ गिरिजाशंकर त्रिवेदी जी और 'भक्त समाज' के संपादक आचार्य संतोषानंद अवधूत जी ने भी समय-समय पर प्रकाशित किया। इन सबके प्रति हृदय से आभारी हूँ। अपना विशेष आभार कैलीफोर्निया (अमेरिका) की एक सशक्त हिन्दी कवयित्री श्रीमती अर्चना पांडा के प्रति व्यक्त करना चाहूँगा जिनके सहयोग के बिना मेरे गीत, संग्रह के रूप में शायद ही आपके सामने आ पाते। पाण्डुलिपि से लेकर प्रकाशन तक अर्चना के सहयोग को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
अपनी पत्नी श्रीमती रजनी द्विवेदी के प्रति अपना स्नेहिल आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने मेरे श्रृंगारिक गीतों को सुनकर-पढ़कर कभी मजाक में भी यह नहीं पूछा कि ये गीत मैंने किसके लिए लिखे हैं या लिखता हूँ? वरना यह गीत-यात्रा शायद ही आगे बढ़ पाती। मेरे दामाद देवेन्द्र मिश्र और लोकेश मिश्र, बेटी अनामिका, प्रज्ञा और बेटे दिव्यांश के प्रति भी स्नेहिल आभार जो मेरे गीतों को भी उतना ही पसंद करते हैं जितना मेरी हास्य-व्यंग्य रचनाओं को।
अंत में यही कहना चाहूँगा कि 'मेरे गीत समर्पित उसको..' के गीत सिर्फ 'उसको' ही नहीं वरन् आप सबको समर्पित हैं अगर ये आपके हृदय तक पहुँचने में ज़रा भी सफल होते हैं। क्योंकि मेरा तो मानना है-
माना गीतों में सब कहना संभव होता है
मगर वही कह पाता जिसको अनुभव होता है
अपना तो अनुभव है थोड़ा कैसे शब्द चुनें
मन करता है मन के गीतों को भी लोग सुनें।
अब मेरे मन के ये गीत आपके मन के भी हैं या नहीं, यह तो आप ही बतायेंगे।
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