ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
14. महके चमन हमारा
साँसों में कस्तूरी महके मन हो हिरन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
हर दूरी से हो जाये अब
पूरी-पूरी दूरी।
रहे न कोई आस अधूरी
पूरी कर लें पूरी।
होकर सघन प्रेमघन बरसे मन हो मगन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
रहें हमेशा ही हम दोनों
इक-दूजे के होके।
कहीं रहें पर कभी न कोई
हमको रोके-टोके।
सारी-सारी धरती अपनी सारा गगन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
चढ़ते-चढ़ते प्रेम, भक्ति की
चोटी तक चढ़ जाये।
इक-दूजे में हमें नज़र बस
अपना ईश्वर आये।
मिलकर गायें गीत मिलन के जैसे भजन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
हर दूरी से हो जाये अब
पूरी-पूरी दूरी।
रहे न कोई आस अधूरी
पूरी कर लें पूरी।
होकर सघन प्रेमघन बरसे मन हो मगन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
रहें हमेशा ही हम दोनों
इक-दूजे के होके।
कहीं रहें पर कभी न कोई
हमको रोके-टोके।
सारी-सारी धरती अपनी सारा गगन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
चढ़ते-चढ़ते प्रेम, भक्ति की
चोटी तक चढ़ जाये।
इक-दूजे में हमें नज़र बस
अपना ईश्वर आये।
मिलकर गायें गीत मिलन के जैसे भजन हमारा।
तुम बहार बनकर आ जाओ महके चमन हमारा।।
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