ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
131. समझ न पाये जीवन को गहराई से
हमने सब कुछ आँका हरदम रुपया-आना-पाई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
आपस के सम्बंधों को भी
हमने धन से ही तोला।
धन की ख़ातिर अपनों से भी
अपना भेद नहीं खोला।
झूठ बोलकर भी जो पाया, कहा- मिला सच्चाई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
कभी न सोचा- किससे जुड़ना
कितना ग़लत-सही होगा।
बस यह सोचा- इससे होगा
उससे लाभ नहीं होगा।
इस चक्कर में अच्छाई के बदले जुड़े बुराई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
पैसे से ही मिलता सब कुछ
सारी दुनिया गाती है।
लेकिन चश्मा ही मिल पाता
आँख नहीं मिल पाती है।
फिर भी कहते हैं- रुपया है बड़ा बाप से भाई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
आपस के सम्बंधों को भी
हमने धन से ही तोला।
धन की ख़ातिर अपनों से भी
अपना भेद नहीं खोला।
झूठ बोलकर भी जो पाया, कहा- मिला सच्चाई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
कभी न सोचा- किससे जुड़ना
कितना ग़लत-सही होगा।
बस यह सोचा- इससे होगा
उससे लाभ नहीं होगा।
इस चक्कर में अच्छाई के बदले जुड़े बुराई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
पैसे से ही मिलता सब कुछ
सारी दुनिया गाती है।
लेकिन चश्मा ही मिल पाता
आँख नहीं मिल पाती है।
फिर भी कहते हैं- रुपया है बड़ा बाप से भाई से।
इस कारण ही समझ न पाये जीवन को गहराई से।।
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