ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
126. कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है
दौड़-भाग के बीच कभी जब फ़ुरसत के दो पल मिल जाते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।।
बड़ा चुनौती भरा काम है
घर-बाहर हर जगह निपटना।
कभी-कभी कितना मुश्किल हो
यहाँ न पटना वहाँ न पटना।
ऐसे में जब कोई मसला किसी तरह से हम निपटाते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।।
मंज़िल भी आसान न होती
रस्ता भी मुश्किल हो जाता।
चलते-चलते किसी समय जब
साहस बहुत शिथिल हो जाता।
तब मंज़िल के दृश्य अगर कुछ आँखों की सीमा में आते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।।
बड़े-बुजुर्ग सही कहते हैं-
संघर्षों से भरी ज़िन्दगी।
संघर्षो से तपकर बनती
कुन्दन जैसी खरी ज़िन्दगी।
कुन्दन जैसी चमक-दमक जब हम अपने जीवन में पाते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती हैं।।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।।
बड़ा चुनौती भरा काम है
घर-बाहर हर जगह निपटना।
कभी-कभी कितना मुश्किल हो
यहाँ न पटना वहाँ न पटना।
ऐसे में जब कोई मसला किसी तरह से हम निपटाते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।।
मंज़िल भी आसान न होती
रस्ता भी मुश्किल हो जाता।
चलते-चलते किसी समय जब
साहस बहुत शिथिल हो जाता।
तब मंज़िल के दृश्य अगर कुछ आँखों की सीमा में आते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है।।
बड़े-बुजुर्ग सही कहते हैं-
संघर्षों से भरी ज़िन्दगी।
संघर्षो से तपकर बनती
कुन्दन जैसी खरी ज़िन्दगी।
कुन्दन जैसी चमक-दमक जब हम अपने जीवन में पाते।
कितनी अधिक ख़ुशी मिलती हैं।।
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