ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
114. कभी न सोचो
कभी न सोचो-किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।
अपनी ख़ुशबू वो बस मेरी ख़ातिर ही फैलाता है।।
फूलों की दुनिया है प्यारी
उनकी ख़ुशबू भी प्यारी है।
जो भी उनके पास आ गया
वो ख़ुशबू का अधिकारी है।
फूल हमेशा अपनी ख़ुशबू सबके लिये लुटाता है।
कभी न सोचो किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।।
चंदा कभी चाँदनी अपनी
किसी एक पर नहीं लुटाये।
चारों ओर चाँदनी छिटकी
जो चाहे आनन्द उठाये।
कोई कहे- 'चाँदनी मेरी' तो यह भ्रम कहलाता है।
कभी न सोचो-किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।।
पेड़-फल-फूल-हवा-रौशनी
पर्वत-झरने-नदिया-सागर।
बिना किसी भी भेदभाव के
हमें प्रकृति ने दिए बराबर।
जो प्रयास जितना करता है वो उतना पा जाता है।
कभी न सोचो-किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।।
अपनी ख़ुशबू वो बस मेरी ख़ातिर ही फैलाता है।।
फूलों की दुनिया है प्यारी
उनकी ख़ुशबू भी प्यारी है।
जो भी उनके पास आ गया
वो ख़ुशबू का अधिकारी है।
फूल हमेशा अपनी ख़ुशबू सबके लिये लुटाता है।
कभी न सोचो किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।।
चंदा कभी चाँदनी अपनी
किसी एक पर नहीं लुटाये।
चारों ओर चाँदनी छिटकी
जो चाहे आनन्द उठाये।
कोई कहे- 'चाँदनी मेरी' तो यह भ्रम कहलाता है।
कभी न सोचो-किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।।
पेड़-फल-फूल-हवा-रौशनी
पर्वत-झरने-नदिया-सागर।
बिना किसी भी भेदभाव के
हमें प्रकृति ने दिए बराबर।
जो प्रयास जितना करता है वो उतना पा जाता है।
कभी न सोचो-किसी फूल से मेरा गहरा नाता है।।
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