ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
110. फिर स्मृति में आया कोई
भूली-बिसरी कुछ यादों में नयन हो गये सावन-सावन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
मैंने घंटों अलबम पलटा
देखे अनगिन चित्र पुराने।
पता नहीं कब नींद आ गयी
सपने आकर लगे रिझाने।
फिर सपनों में आया कोई रात हो गयी चन्दन-चन्दन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
वातावरण सुगन्धित सारा
मेरा हर क्षण लगा महकने।
पंछी मेरी आशाओं का
फुदक-फुदक कर लगा चहकने।
फिर चितवन में आया कोई रूप हो गया दरपन-दरपन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
दिवस-निशा के महामिलन पर
संध्या ने सिन्दूर बिखेरा।
दोनों एकाकार हो गए
रहा न कुछ भी तेरा-मेरा।
फिर साँसों में आया कोई और हो गया जीवन-जीवन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
मैंने घंटों अलबम पलटा
देखे अनगिन चित्र पुराने।
पता नहीं कब नींद आ गयी
सपने आकर लगे रिझाने।
फिर सपनों में आया कोई रात हो गयी चन्दन-चन्दन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
वातावरण सुगन्धित सारा
मेरा हर क्षण लगा महकने।
पंछी मेरी आशाओं का
फुदक-फुदक कर लगा चहकने।
फिर चितवन में आया कोई रूप हो गया दरपन-दरपन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
दिवस-निशा के महामिलन पर
संध्या ने सिन्दूर बिखेरा।
दोनों एकाकार हो गए
रहा न कुछ भी तेरा-मेरा।
फिर साँसों में आया कोई और हो गया जीवन-जीवन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।।
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