लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587
आईएसबीएन :9781613013083

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


अच्छा, अब इस अद्भुत बात का अर्थ समझने का प्रयत्न करने के पूर्व हमें यह ध्यान में रखना है कि इसी एक तथ्य पर सारा संसार टिका हुआ है या खड़ा है। बाह्यजगत् की नित्यता का अटूट सम्बन्ध अन्तर्जगत् की नित्यता से है। और चाहे विश्व के विषय में वह सिद्धान्त - जिसमें एक को नित्य और दूसरे को अनित्य बताया गया है - कितना ही युक्ति-संगत क्यों न दिखे, ऐसे सिद्धान्तवाले को स्वयं ही अपने ही शरीररूपी यन्त्र में पता चल जायेगा कि ज्ञानपूर्वक किया हुआ एक भी ऐसा कार्य सम्भव नहीं है जिसमें कि आन्तरिक और बाह्य संसार दोनों की नित्यता उस कार्य के प्रेरक कारणों का एक अंश न हो। यद्यपि यह बिलकुल सच है कि जब मनुष्य का मन अपनी मर्यादा के परे पहुँच जाता है तब तो वह द्वन्द्व को अखण्ड ऐक्य में परिणत हुआ देखता है। उस असीम सत्ता के इस ओर सम्पूर्ण बाह्य संसार - अर्थात् वह संसार जो हमारे अनुभव का विषय होता है - उसका अस्तित्व विषयी (ज्ञाता) के लिए है ऐसा ही जाना जाता है, या केवल ऐसा ही जाना जा सकता है। और यही कारण है कि हमें विषयी के विनाश की कल्पना करने के पूर्व विषय के विनाश की कल्पना करनी होगी।

यहाँ तक तो स्पष्ट है। परन्तु कठिनाई अब इसके बाद होती है। साधारणत: मैं स्वयं अपने को देह के सिवाय और कुछ हूँ ऐसा सोच नहीं सकता। मै देह हूँ यह भावना मेरी अपनी नित्यता की भावना के अन्तर्गत है, परन्तु देह तो स्पष्ट ही उसी तरह अनित्य है जैसी कि सदा परिवर्तनशील स्वभाववाली समस्त प्रकृति।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai