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मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587
आईएसबीएन :9781613013083

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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


इस प्रकार के पुनर्जन्म का अनुभव द्वारा भी प्रमाण मिल जाता है - यह नहीं भूलना चाहिए। यथार्थ में तो नये प्रकट होनेवाले प्राणियों के जन्म से और जीर्ण होनेवालों की मृत्यु से सम्बन्ध रहता ही है। यह बात तब दिखायी देती है, जब कि उजाड़ बना देनेवाली भयंकर बीमारियों का परिणाम सा प्रतीत होनेवाली मनुष्यजन्म-संख्या की बाढ़ का आधिक्य हुआ करता है। चौदहवीं शताब्दी में जब 'ब्लैक डेथ (Black Death) नामक बीमारी ने 'पुरानी दुनिया' की अधिकांश आबादी को उजाड़ कर दिया, उस समय मानवजाति में बहुत असाधारण रूप से उत्पत्ति-शक्ति और जन्मसंख्या बढ़ गयी। यमज (जुड़वाँ) बालकों की पैदायश अधिक हुई।

एक बात और उल्लेखनीय है कि उस समय पैदा होनेवाले बच्चों के दाँत पूरी संख्या में नहीं जमे; इस प्रकार प्रकृति ने भरपूर प्रयत्न किये, परन्तु सूक्ष्म अंगों की उत्पत्ति में कृपणता कर दी। यह विवरण एफ. स्नूरार (F. Schnurrer) ने अपने Cronik Der Senchen 1825 में दिया है। कैस्पर (Casper) भी अपने Uber Die Wahrscheinliche Labensdauer der Menschen 1835 में इस सिद्धान्त का समर्थन करता है कि किसी विशिष्ट आबादी में वहाँ की जनसंख्या का प्रभाव वहाँ के जीवनकाल की दीर्घता और मृत्युसंख्या पर अवश्य पड़ता है, क्योंकि जन्मसंख्या मृत्युसंख्या के साथ-साथ चलती है, सदैव और सर्वत्र मृत्यु और जन्म की संख्याएँ समान अनुपात में बढ़ती और घटती हैं; इस बात को निसन्देह रूप से सिद्ध करने के लिए उन्होंने भिन्न-भिन्न देशों और भिन्न-भिन्न प्रान्तों से प्रमाण एकत्र किये हैं। और, फिर यह तो असम्भव है कि मेरी अकाल मृत्यु से, और जिस विवाह से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसे विवाह द्वारा अनेक सन्तान के जन्म लेने से कोई भौतिक कार्य-कारण-सम्बन्ध हो। इस प्रकार यहाँ आध्यात्मिकता अस्वीकार करने लायक नहीं दिखायी देती और निश्चयात्मक रूप से भौतिक घटना को समझने लायक तात्कालिक कारण मिल जाता है।

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