ई-पुस्तकें >> मरणोत्तर जीवन मरणोत्तर जीवनस्वामी विवेकानन्द
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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?
तत्पश्चात् हम अलेक्जेण्ड्रिया के यहूदियों मे व्यक्तिमान आत्मा का सिद्धान्त देखते हैं और ईसा मसीह के समय के फैरिसी लोग भी - जैसा हम पहले बता चुके हैं - न केवल स्वतन्त्र आत्मा में ही विश्वास करते थे वरन् भिन्न-भिन्न शरीरों में वह भटकती रहती है, यह भी मानते थे, और इस प्रकार यह जानना आसान हो जाता है कि ईसामसीह एक पुराने पैगम्बर के अवतार कैसे माने गये, और स्वयं ईसा मसीह जोर देकर कहते थे कि पैगम्बर इलियस ही जान बैप्टिस्ट बनकर पुनः आये थे। ''यदि आप इसे माने, तो यह इलियस ही है, जो आनेवाला था।'' - मैथ्यु 11-14।
आत्मा और उसके स्वतन्त्र व्यक्तित्व का विचार हिब्रुओं में, मालूम होता है। मिस्री लोगों के उच्चतर रहस्यमय उपदेशों के द्वारा पहुँचा और इजिप्तवालों ने उसे भारतवर्ष से ग्रहण किया। और वह विचार अलेक्जेण्ड्रिया के रास्ते आया, यह बात अर्थपूर्ण है, क्योकि बौद्ध ग्रन्थों से स्पष्ट पता चलता है कि बौद्ध धर्मप्रचारकों का कार्यक्षेत्र अलेक्जेण्ड्रिया और एशिया माइनर में रहा है।
कहा जाता है कि पाइथागोरस ही प्रथम यूनानी है, जिसने ग्रीस (यूनान) देशवाले हेलन्स लोगों को पुनर्जन्म का सिद्धान्त सिखाया। वे आर्य जाति के होने के कारण पहले ही अपने मुरदों को जलाते थे और व्यक्तिमान आत्मा के सिद्धान्त को मानते थे, अत: उन यूनानियों को, पाइथागोरस के उपदेश से पुनर्जन्म का सिद्धान्त मान लेना आसान मालूम पड़ा। अपूलियस (Apuleius) के कथन के अनुसार पाइथागोरस भारतवर्ष में आये थे और वहाँ के ब्राह्मणों से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की थी।
अब तक हम यह जान चुके कि जहाँ कहीं आत्मा न केवल शरीर को जीवित रखनेवाला एक अंश, वरन् पृथक् 'यथार्थ मनुष्य' ही मानी जाती है, वहाँ उसके पूर्वास्तित्व का सिद्धान्त अवश्य ही निश्चित हो चुका, और जिन राष्ट्रों ने आत्मा के स्वतन्त्र व्यक्तित्व को माना, उन्होंने मृतक शरीर को जलाकर अपने उस विश्वास को बाह्यरूप में सदैव प्रकट भी किया, यद्यपि आर्यों की एक पुरानी जातिवाले पर्शियानिवासियों (फारस देशवालों) ने पुराने जमाने से ही, बिना किसी सेमिटिक प्रभाव के, अपने यहाँ के मुरदों को अलग करने की एक अद्भुत रीति प्रचलित की। वे अपने ''Towers of Silence'' (शान्ति की मीनारों) को जिस नाम से पुकारते हैं वह नाम ''दह'' (जलाना) धातु से बना है।
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