ई-पुस्तकें >> काँच की चूड़ियाँ काँच की चूड़ियाँगुलशन नन्दा
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एक सदाबहार रोमांटिक उपन्यास
यह कहते-कहते वह खिसक कर उसके और समीप हो गया और फिर उसने एकाएक अपना सिर गंगा की गोद में रख दिया। गंगा पसीने में भीग गई। पर उसी दशा में बैठी रही। शायद वह उस पर उपकार करके उसे जीतना चाहता था। उसने अपने नियमों का उल्लंघन करके इस कलंकिनी को अपनाया था...
उसके सिर को कोमल गोद का सहारा दिए वह मौन बैठी रही और मोहन उसे अपने अतीत की सुन्दर बातें सुनाता रहा। जवानी की बातों के उल्लेख में उसे एक प्रसन्नता अनुभव हो रही थी। बातों ही बातों में उसने अपना गहरा रहस्य भी उस पर प्रकट कर दिया। उसने उसे बताया कि गंगा उसकी प्रथम प्रेमिका न थी। उससे मिलने से पूर्व भी अपने कालेज के जीवन में; वह एक लड़की से प्रेम कर चुका है। दोनों एक-दूसरे से असीम प्यार करते थे कि अचानक किसी तूफान ने उसके प्यार की नौका के टुकड़े-टुकडे कर दिए। वह लड़की एक वैश्या की बेटी थी। उस लड़की ने किसी और से प्रेम करके उसकी सुन्दर कल्पनाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया था, उसे धोखा दिया था। उस दिन से उसने निर्णय कर लिया था कि यदि उसने कभी कोई जीवन-साथी चुना तो वह इस नई दुनिया की चिनगारी न होगी बल्कि दूर मौन घाटियों में पलने वाली कली होगी जिसे छल और कपट की हवा भी न छू गई हो... कृत्रिमता और बनावट से दूर... सौन्दर्य और भोलेपन की मूर्ति।
यह कहकर वह मौन हो गया; लेकिन गंगा का मुख पीला पड़ गया। इस कहानी से उसके हृदय की गति मानो थम गई। शरीर सुन्न हो गया और वह किसी और दुनिया में खो गई।
''क्या सोच रही हो?'' मोहन ने पूछा।
''मैं... कुछ नहीं..'' गंगा हड़बड़ा उठी।
''मेरी यह भूल क्षमा कर दोगी ना...'' मोहन ने तुरन्त दूसरा प्रश्न किया।
''भूल!'' गंगा ने उसे देखा और दृष्टि मिलते ही कांप गई।
''हाँ, गंगा! मैं तो डर रहा था कि कहीं यह रहस्य जानकर तुम मुझसे घृणा न करने लग जाओ।''
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