ई-पुस्तकें >> काँच की चूड़ियाँ काँच की चूड़ियाँगुलशन नन्दा
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एक सदाबहार रोमांटिक उपन्यास
''मेरी बुद्धि तो काम नहीं करती रूपा की मां। मैं तो सोच-सोच कर पागल हो जाऊंगा... गंगा अब बच्ची नहीं कि पड़ी रहे, सयानी हो गई है। अब उसके हाथ पीले कर देना ही बुद्धिमानी है..।''
''सयानी हो गई है तो क्या...मेरी रूपा भी तो बैठी है घर में।''
''पर निर्धनता तो आंगन में डेरा जमाये नहीं बैठी।''
''घबराओ नहीं...तुम्हारी गंगा के लिए मैंने लड़का देख रखा है। खानदान भी अच्छा है और कमाऊ भी है...''
'''कौन?'' बंसी ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।
''मेरा मोहन।'
''मोहन...।'' बंसी का मुख उल्लास से खिल उठा, ''क्या वह मान जायेगा?''
''मेरी बात वह कैसे टालेगा...?''
बंसी की आंखों में क्षण भर के लिए चमक आ गई। पलकें भीग गईं। हाथ में रखा प्रसाद उसने एक ही कौर में कंठ में उतार लिया। रसोई में बैठी गंगा काकी की बातें सुन रही थी। काकी के अन्तिम वाक्य पर उसका हृदय पुलकित हो उठा और वह मधुर कल्पनालोक में खो गई। बंसी ने यह सोचा भी न था कि इतनी सुगमता से गंगा के लिए ऐसा अच्छा वर मिल जायेगा। उसके मन से एक बोझ उतर गया। एक ओर पेट का प्रश्न और दूसरी ओर जवान बेटी का विचार, प्रताप किसी समय भी उसकी विवशता से लाभ उठा सकता था। यह तो अच्छा हुआ जो मंगलू द्वारा उसे अपने मालिक के विचारों का पता चल गया। यदि वह स्वयं आकर ऐसा प्रस्ताव रखता तो न जाने क्या होता। उसने सोचा, अवसर मिलते ही वह उन पर यह प्रकट कर देगा कि उसने बेटी के लिए कमाऊ, सुन्दर व खानदानी वर खोज लिया है।
अगली सुबह बंसी कुछ देर से काम पर पहुँचा। प्रताप पहले से ही वहां उपस्थित था। बंसी को देखते ही बिना मुख से कुछ कहे उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखा।
''कुछ देर हो गई मालिक!'' बंसी ने स्थिति का भान करते हुए अपना अपराध स्वीकार किया। फिर कुछ रुककर बोला, ''मोहन को शहर जाना था, उसे विदा करते हुए देर हो गई।''
''मोहन? यह कौन है?'' प्रताप ने पूछा।
''जानकी का भतीजा...बड़ा अच्छा लड़का है। उसी से गंगा की बात पक्की की है सरकार! भगवान ने चाहा तो आते जाड़े में इस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊँगा-उसके हाथ पीले कर दूँगा।'' गंगा के व्याह की सूचना से प्रताप पर मानो बिजली आ गिरी हो। वह हक्का-बक्का बंसी की ओर यूं देखने लगा जैसे उसने उसे किसी सगे-सम्बन्धी की मृत्यु की सूचना दी हो। कुछ देर तक वह चुपचाप उसे देखता रहा और बिना कोई शब्द कहे बाहर चला गया। बंसी अपने काम में जुट गया। न जाने क्यों उसे विश्वास-सा हो गया कि गंगा की लगन की सूचना सुनकर अब मालिक उसके विषय में कोई कुबिचार मन में न लायेगा।
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