ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
तस्वीर
तस्वीर हवा के झोंकों से बार-बार
बन और बिगड़ रही थी,
हवा रुकी एक चेहरा बना
कुछ देखा अनदेखा था,
कई तस्वीरों से मिलाकर देखा,
तो याद आया इस चेहरे को देखा है,
जलती आग में ये चेहरा देखा था,
कितना गमगीन था,
मासूमियत का सागर था, उस चेहरे में,
महसूस हो रहा था,
आग उस चेहरे को
सुंदरता देने की कोशिश कर रही थी,
नया ढंग देने की कोशिश कर रही थी,
अचानक बारिश की बूँदों ने
उसकी इच्छाओं का दमन कर दिया,
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