ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
किस्मत
बार बार दस्तक देती रही, किस्मत जिंदगी की चौखट पर, लेकिन उसके स्वागत के लिए कोई राज़ी ना हुआ, फ़र्क था उस जिंदगी में जो भेष बदलकर चौखट के उसपार खड़ी थी, और एक जो चौखट के इस पार खड़ी थी, दोनो को यकीन सिर्फ़ मुझ पर था, और मुझे यकीन सिर्फ़ खुद पर, डर था कहीं रूठ कर लौट ना जाए, क्योकि कुशकिस्मत शख्सों की चौखट पर दस्तक ये दोहरी जिंदगी देती है, जो हर वक्त कुछ माँगने की फिराक में रहती है, कब तक ये सिलसिला जारी रहेगा, एक दिन तो ख़त्म हो जायेगा, ये खेल दस्तक देने का, और बार- बार रुठ कर मनाने का.....
ख्वाहिस्तगार हैं,
इस महफ़िल के हिस्सेदार वो भी हैं,
सुबह होने का इंतजार है,
जिंदगी की इस चौखट के बाद,
इम्तिहान कैसा होगा,
इसका इंतजार बेसब्री से है,
रुठ कर जिंदगी लौट जाएगी, इसका ख़ौफ़ भी है।
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