ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
अधूरे पन्ने
आधी रात को मैंने तकदीर के कुछ पन्ने लिखे थे, अपने लिए और बाकी जो बचे हुए थे, वो तुम्हारे लिए। उन आधे अधूरे पन्नों में बहुत कुछ लिखा था, उस किताबी लफ़्ज़ों से मिलते जुलते थे जिसे एक शख्स ने दी थी। जो समझ में आ रहे थे वो मैंने पढ़े जो नहीं आये तो पन्ने पलट कर रख दिए, जब वक्त मिलेगा तो पढ़ेंगे। वक्त पानी की तरह हाथ से फिसल गया, आज वक्त मिला, मैंने किताब खोलकर देखा तो उस किताब के कुछ पन्ने जले हुए थे। वो मेरी तकदीर के कुछ पन्ने थे जो आधे जल चुके थे, लिखे हुए शब्द पहचान में नहीं आ रहे थे, लेकिन एक शब्द था जो पन्नों के जलने के बाद भी वैसा का वैसा लिखा था "तुम"
मैंने लिखे तकदीर के कुछ पन्ने थे,
कुछ आधे थे, कुछ अधूरे थे,
मिलते जुलते शब्द थे,
कुछ उसके थे कुछ मेरे थे,
समझ से कुछ परे थे,,
कुछ समझ में आते थे,
मैंने लिखे तकदीर के कुछ पन्ने थे,
कुछ आधे थे, कुछ अधूरे थे,
किस्मत के कुछ पन्ने,
कोरे थे, कुछ लिखे थे,
कुछ पन्ने थे .........।
कुछ पन्ने थे,
उन पर बिखरी हुए अल्फ़ाज़ थे,
लिखी दास्तान थी,
बस बिखरे हुए कुछ अल्फ़ाज़ थे,
कुछ पाने की आरजू थी,
लिखे कुछ बिना लिखे,
आधे-अधूरे पन्ने थे.........।
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