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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना के लिए कमल ने एक नई पहेली खड़ी कर दी? उसे एक नये चक्कर में डाल दिया। वह कोशिश करने पर भी उसकी बात से इंकार नहीं कर सकी।

कमल चला गया लेकिन अंजना अपनी जगह से न हिल सकी। वह वहीं बैठी रही और झील की उन शांत गहराइयों को देखती रही जो उसके दिल की तरह गहरी थीं।

बार-बार उसके कानों में कमल के ये शब्द गूंज रहे थे-''मैं तो सौंदर्य से अधिक आचरण चाहूंगा। एक ऐसी लड़की जो अपने पति के बिना इस धरती पर और कुछ सोच न सके। उसमें तुम जैसा आदर्श हो, जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना जानती हो।''

कमल उसे पसंद करता था। उसने कभी-कभी उसकी पुतलियों में अपनी तस्वीर नाचती देखी थी और अपने दिल में उसके प्रति खिंचाव-लगाव का आभास भी किया था। कई बार उसका मन चाहा कि साहस करके उससे सब कुछ कह दे कि जिस दुल्हन के आंचल से उसका दामन बांधा जाने वाला था, वह वही अभागिन है जिसकी अब अग्नि-परीक्षा हो रही है, लेकिन वह ऐसा कहने का साहस न बटोर सकी ताकि वह तस्वीर जो आज एक देवी की तरह उसकी आंखों में समाई हुई थी, कहीं गिरकर धरती की धूल में न दब जाए।

यह सोचते ही उसकी आंखों में आंसू आ गए। दिल के दर्द ने करवट ली और वह तड़पकर रह गई। वह यथार्थ से मुंह मोड़ना चाहती थी। वह आज को भूलकर कल के सपनों में खो जाना चाहती थी, लेकिन उसका अतीत हर कदम पर सामने आकर उसके आंचल से लिपट जाता था। वह जितना अपने आपको छिपाना चाहती थी, समय की गति उतना ही उसे खोलती जाती थी।

उसने मुड़कर देखा। कमल निगाहों से ओझल हो चुका था, ठीक उसी तरह जैसे कभी वह उसकी ज़िंदगी से ओझल हो चुकी थी। वह यही कुछ सोचती-विचारती धीरे-धीरे कदम बढ़ाती अपने घर की ओर चली गई।

दूर सुनसान झील में एक किश्ती चली जा रही थी, उसी की तरह अकेली डगमगाती!

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