ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''शादी-ब्याह से नहीं, बल्कि औरतजात से।''
''पूनम!'' वह थरथरा उठा।
अंजना चलते-चलते रुक गई और उसकी झेंपी हुई निगाहों को देखने लगी जो उससे कुछ कहना चाहती थीं लेकिन साहस नहीं हो रहा था।
''मैं सब कुछ जानती हूं। मांजी ने मुझे सब बता दिया है।'' अंजना ने धीरे से कहा।
''एक बात और भी है।''
''वह क्या?''
''शायद भगवान को वह रिश्ता पसंद नहीं था जभी तो उसने यह बंधन बनने से पहले ही तोड़ दिया।''
''लेकिन दुनिया वाले तो कहते हैं कि यह रिश्ते जन्म-जन्म के होते हैं। यह कभी टूटा नहीं करते।''
''लेकिन यहां तो टूट गए।''
''शायद इसलिए टूट गए कि असली बंधन उस लड़की से होने निश्चित हों जो अब नैनीताल में आपके लिए आई है।''
''नहीं, यह कैसे हो सकता है?''
''क्यों नहीं हो सकता! यों भी शादी के बिना ज़िंदगी एक बोझ-सा बनकर रह जाती है।''
कमल ने तुरत ही मुंह मोड़ लिया और एक कंकड़ झील में फेंकते हुए उसने अंजना की ओर देखा। उसकी आंखें भी झील की तरह गहरी थीं।
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