ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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जीवन के कुछ दिन और व्यतीत हो गए। धीरे-धीरे अंजना का अस्तित्व मिटता चला गया और पूनम उस घर में निखरती चली गई। वह थोड़े ही दिनों में उस घर की दिनचर्या सीख गई। उसकी सारी इच्छाएं और कामनाएं दबकर रह गईं और वह शेखर की विधवा बनकर दिन बिताने लगी।
यह एक विचित्र संयोग की बात थी कि जिस लड़की ने ज़िंदगी की बहारों को अभी छुआ भी नहीं था उसे विवश होकर अपने दिल पर पत्थर रखकर एक विधवा का रूप धारण करना पड़ा। दुनिया वालों के सामने तो उसकी सारी खुशियां वियोग और सोक में बदल चुकी थीं, लेकिन अन्दर ही अन्दर वह खुश थी। उसके हृदय को एक विचित्र ढारस मिल गया था। अजीब शांति मिल गई थी। वर्तमान की प्रफुल्लित कल्पनाओं ने अतीत की परछाइयों को अपने भार तले छिपा लिया था। उसने मौत में ज़िंदगी की झलक देख ली थी।
आज इस घर में वह आजादी की सांस ले रही थी। उसके सास-ससुर पड़ोस में किसी का हाल-चाल पूछने गए हुए थे। उपवन की मखमली घास पर वह बच्चों की तरह नंगे पाव उछल-कूद रही थी। अपनी आंखों पर दुपट्टे की पट्टी बांधकर वह अपने राजीव से आंख-मिचौनी खेल रही थी। राजीव उसे अलग छोड़कर स्वयं किसी पौधे के पीछे छिप जाता। अंजना अनजान-सी बनी उसे खोजने दौड़ती और हर बार जान-बूझकर उस पौधे को छोड़कर दूसरे किसी पौधे की ओट में झांकने लगती। इसपर राजीव अपने पौधे की ओट से निकलकर खुशी से ताली पीटने लगता। वह इसी खेल से अपना दिल बहला रही थी।
सहसा वह ठिठककर रुक गई। उसके चेहरे पर एक रंग आकर चला गया। लाज के मारे उसका सारा बदन पसीना-पसीना हो गया। उसने फौरन दुपट्टे से अपना सीना ढक लिया और कनखियों से उस व्यक्ति की ओर देखा जो राम जाने कब से खड़ा उनका यह खेल देख रहा था।
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