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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


वह बन्द दरवाजे के पास ठिठककर रुक गई। उसके दिल की धड़कन पहले से अधिक तेज हो गई। अंग अंग में एक कंपकपाहट पैदा हो गई। वह उस देवता के कमरे में प्रवेश कर रही थी जो कभी उसका सिरताज था, लेकिन उसने कभी उसे देखा नहीं था। वह उसकी विधवा थी, लेकिन जीवन का एक पल भी उसने उसके साथ रहकर व्यतीत नहीं किया था। वह कुछ देर यही सब कुछ सोचती रही और फिर उसने किवाड़ धकेलकर खोल दिया।

कमरे का दृश्य सामने आते ही उसके दिल की धड़कन पल-भर के लिए थम गई। चलता हुआ सांस रुककर रह गया और वह फटी-फटी नजरों से उस कमरे की वस्तुओं को निहारने लगी। अपने बोझिल कदम उठाते हुए वह अन्दर आई। समुचित ढंग से सारी चीजें सजी हुई थी। कमरा भी साफ था। ऐसा लग रहा था जैसे कुछ देर पहले वहां शेखर मौजूद था। वह धीरे-धीरे उस खिड़की की ओर चली गई जिसे थोड़ी ही देर पहले नौकर खोलकर चला गया था।

खिड़की का सहारा लेकर अंजना ने बाहर बिखरी पहाड़ियों पर नजर डाली। उन पहाड़ियों मे घिरी हुई एक झील दूर तक फैली हुई थी। उसका स्वच्छ झिलमिलाता हुआ पानी बड़ा मनोरम दृश्य उपस्थित कर रहा था। अंजना को लगा जैसे ठण्डी मधुर बयार उसके सूखे बालों को थपथपा रही हो। उसकी घुटी हुई सांस फिर से चलने लगी हो। चिड़ियों की चहचहाहट, खुली हवा में उनकी उड़ानें उसमें नवजीवन का संचार करने लगीं।

सहसा उसकी निगाहें सामने रेडियोग्राम पर रखे एक फोल्डिंग फ्रेम पर जाकर रुक गईं। वह लपककर उधर बढ़ी और उसे खोलकर देखा। यह फोटो शेखर का था जो उसने कभी उस झील के किनारे किसी चट्टान पर बैठकर खिंचवाया था। गठीले बदन का सुन्दर युवक, खिला हुआ चेहरा, मुहब्बत की रोशनी से चमकती हुई आंखें और निरन्तर मुस्कानों से खिले होंठ-फिर न जाने विधाता ने उसे इस धरती पर जीने का अवसर क्यों नहीं दिया।

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