ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''मुझे और अधिक लज्जित न करो बेटी! यह सब मेरी नासमझी का नतीजा था जो मैंने लक्ष्मी जैसी बहू को ठुकरा दिया। तुम जैसी देवी को अपनाने से इंकार कर दिया।''
''अब इन बातों को भूल जाइए बाबूजी! आप यों समझ लीजिए कि आपने मुझे बहू नहीं माना था और अब बेटी मानकर अपनी छत्रच्छाया में रख लिया है।''
यह कहकर वह लौट गई। लाला जगन्नाथ की आंखों से मोटे-मोटे आंसू ढलक पड़े। वे अपने दिल का दर्द कम करने के लिए अंजना के हाथ की बनी चाय के घूंट भरने लगे।
कमल चला गया। रमिया बच्चे को लिए खिलौनों में मग्न हो गई। बाबूजी फिर अखबार पढ़ने लगे और मां अपनी अधूरी पूजा पूरी करने के लिए फिर से भगवान की मूर्ति के सामने जा बैठी।
अंजना ने संतोष की सांस ली और चुपके-चुपके घर के चारों कोनों में चलने-फिरने लगी। उसने एक मुद्दत के बाद आज आजादी का सांस लिया था। उसे एक प्रतिष्ठित सहारे की तलाश थी और वह उसकी पूनम ने अपनी मौत से पहले उसकी गोद में डाल दिया था।
अंजना का सामान नौकरों ने शेखर के कमरे में रख दिया था-वह कमरा जो अभी तक वीरान और दीनहीन अवस्था में पड़ा था, वह फिर से बसने जा रहा था। जिस कमरे के अंधरे ने घर के उजालों को निगल लिया था, आज वह अंधेरे में सिमटकर कहीं दूर जा छिपे थे।
अंजना न जाने क्या सोचकर सीढ़ियों पर चढ़ गई जो उस बन्द दरवाजे तक जाकर खत्म हो जाती थीं। उसे ऐसा लगा जैसे वह सचमुच इस घर की बहू हो, जो अब विधवा हो चुकी थी और इस घर की इज्जत और सारी जिम्मेदारियों का बोझ भाग्य ने उसके कंधों पर डाल दिया था।
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