ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
दोनों खाना खा चुके। रात काफी बीत गई थी। अब सोने का समय था। कमल ने अपने शयन-कक्ष में अंजना का बिस्तर बिछवा दिया और वह स्वयं अपने अध्ययन-कक्ष में जा सोया। कमल की इस थोड़ी-सी भेंट से वह बड़ी प्रभावित हुई थी। वह अपने-आपको उसके करीब समझने लगी थी। इस नई जगह उसे नींद तो नहीं आ रही थी, लेकिन मानसिक शांति अवश्य मिल गई थी। एक मुद्दत के बाद वह अपने दिलो-दिमाग में एक चैन-सा महसूस कर रही थी।
यह एक छोटा-सा घर था। हर चीज ढंग से सजी हुई थी। यह सब कुछ देखकर अंजना अपनी कल्पनाओं के संसार में खो गई। उसे याद आया कि उसके सपनों में भी एक ऐसी दुनिया ने जन्म लिया था जिसे औरत का स्वर्ग कहना चाहिए, लेकिन वह सपना साकार नहीं हो सका। उसके जीवन में एक अवसर अवश्य आया अपना संसार बसाने का, मगर वह अवसर उसके हाथ से निकल गया और उस दुनिया का पोषक, उसका दूल्हा उसे मिलने से पहले ही बिछुड़ गया।
इसके बाद अंजना को उस पिचाश का ख्याल आया जिसने पल-भर में उसके विश्वास को छिन्न-भिन्न कर दिया था। बनवारी ने उसके जीवन को ऐसा मोड़ दिया कि वह कहीं की नहीं रही। इस निर्मम घटना के स्मरण से उसका हृदय ग्लानि से भर उठा। उसके दिल को एक धचका-सा लगा, और हृदय की पीड़ा आंसू के रूप में उसके पलकों पर आकर थर्राने लगी।
आज वह जीवन-सागर में हिचकोले खाती हुई एक ऐसी नौका थी जिसकी अपनी कोई मंजिल नहीं थी। उसका भाग्य लहरों के उन रेलों में छिपा हुआ था जो उसे धक्के देकर किसी अनजानी मंजिल की ओर ले जा रहे थे।
रात बीत गई।
सूरज निकलने से पहले ही अंजना नैनीताल जाने के लिए तैयार बैठी थी। नौकर बच्चे के लिए दूध ले आया था और अब नाश्ता बना रहा था।
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