ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
शादी का नाम सुनते ही कमल के चेहरे की लाली पीलाहट में बदल गई। वह मौन हो गया और चुपचाप खाना खाने लगा। अंजना को लगा जैसे उसने उसका निरादर किया हो। वह अपनी बात पर पछताने लगी और वह भी चुपचाप खाना खाने लगी।
''आप मेरी बात से बुरा मान गए?'' कुछ देर बाद अंजना ने बड़े-नम्र स्वर में पूछा।
''नहीं। दरअसल शादी से मुझे नफरत है। ऐसे बंधनों में बंधकर इंसान अपनी आजादी खो बैठता है। अब आप ही सोचिए ना, शादी करके आपने क्या सुख पा लिया? भरी जवानी में विधवा हो गईं। ज़िंदगी-भर एक बच्चे की जिम्मेदारी! दुनिया-भर के ताने! और...और...''
''आप ठहरे मर्द! आप ऐसा सोच सकते हैं, लेकिन नारी-जीवन तो ऐसे ही बंधनों का योग है। प्यार, ममता और कर्तव्य - ये न हों तो नारी-जीवन खोखला हो जाता है।''
कमल ने उसकी बात सुनी और सिर उठाकर उसकी आंखों में झांका। उनमें एक अनोखी चमक छिपी हुई थी जिसने उसकी धारणा को अर्थहीन बना दिया था और वह एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह अधिक बहस नहीं कर सका।
इधर अंजना ने यह बात कह तो दी थी, परन्तु उसके हृदय के भीतर छिपा हुआ झूठ फिर से उसे डसने लगा था। वह चुपचाप खाना खाने में लीन रही। कभी-कभी नजरें उठाकर वह उस खिड़की की ओर भी देख लेती जिसपर बरसात के गिरते छींटे बढ़ते ही जा रहे थे।
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