ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
शबनम, जो बुत बनी यह सब देख रही थी, बनवारी के भाग्य का निर्णँय सुनकर चुपके से बाथरूम की ओर जाने लगी, लेकिन तिवारी ने उसे वहीं रोक लिया-''श्रीमतीजी, आप भी।''
''नहीं-नहीं-''वह चिल्लाकर भागने लगी। दो सिपाहियों ने लपककर उसे अपनी पकड में ले लिया और घसीटकर बनवारी के बराबर ला खड़ा किया।
''वाह! इतनी बेरुखी! सुना है मोहब्बत करने वाले कयामत तक एक-दूसरे का साथ देते हैं-आप तो सिर्फ जेल से डर गईं!'' इंस्पेक्टर ने मुस्कराकर कहा।
शबनम सटपटाकर रह गई और फिर तिवारी का इशारा पाकर दोनों पुलिस के हमराह हो लिए।
उनके जाने के बाद जब अंजना भी उनके पीछे-पीछे जाने लगी, तो एक कोने में खड़े कमल को देखकर उसके कदम रुक गए। अंजना ने पलटकर उसकी ओर देखा। वह इत्मीनान से खड़ा सिगरेट सुलगा रहा था। वह उसके निकट जाकर धीरे से बोली-''मेरे पास शब्द नहीं है जो आपको धन्यवाद दे सकूं!''
''किस बात का?''
''यह जो आपने इतना बड़ा अहसान किया है मुझपर!''
''कैसा अहसान?''
''मेरे माथे पर से कलंक का टीका मिटाकर। नहीं तो दुनिया वाले मुझी को बाबूजी का हत्यारा समझते।'
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