लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


23


रात आधी से अधिक बीत चुकी थी लेकिन शबनम और बनवारी की आंखों में नीद न थी। बनवारी आज बेतहाशा शराब पी रहा था और वह साकी बनी उसे जाम पर जाम दे रही थी। बनवारी ने उसे भी पिलानी चाही, लेकिन वह बराबर इनकार करती रही।

''डरती हो क्या?'' बनवारी ने हिचकी ली और उसके होंठों पर अपनी उंगली फेरते हुए पूछा।

''नहीं तो-डर किस बात का?''

''कहीं पी ली तो कोई नुकसान न पहुंच जाए!'' बनवारी ने उसके पेट की ओर संकेत किया।

''अरे नहीं-डर तो बस एक बात का है कि कहीं तुम धोखा न दे जाओ।''

''वह क्यों?''

''पुलिस वालों के सामने अंजू को अपनी बीवी जो मान लिया है तुमने।''

''रही ना अनाड़ी की अनाड़ी। अरे माना ही तो है, ब्याह थोड़े रचा लिया है-बल्कि यह कहो कि एक तीर से मैंने दो निशाने बांध लिए हैं।''

''वह कैसे?''

''जिसे बीवी माना है वह तो जीवन-भर जेल में सड़ेगी और जिसे अपनी माना है, वह विधवा बनकर इतनी बड़ी जायदाद की मालिक बनकर मजे करेगी।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book