ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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कमल और उसके पिताजी जब डिप्टी साहब के अन्तिम दर्शनों को पहुंचे तो उनकी चिता जलकर राख हो चुकी थी। राख के उस ढेर को देखते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए। जिस व्यक्ति को वे हंसता-बोलता राज्य करता छोड़ गए थे, आज वह एक सपना-सा बनकर रहे गया था।
कमल ने उनकी विधवा शान्तिदेवी को सहारा दिया और चिता से दूर ले गया। उसके पिता केदारनाथ वहीं खड़े राख के उस ढेर को देखते रहे। मित्र की मृत्यु ने उनके दिल पर गहरा असर किया था और उन्हें लग रहा था जैसे उनका एक बाज़ू टट गया हो।
कमल ने चिता के गिर्द खड़े अन्य लोगों की ओर देखा। उनमें बनवारी भी था और शबनम भी-जिसने उस घराने की असली बहू होने का दावा किया था। शबनम जब शान्तिदेवी के करीब गई तो शान्तिदेवी ने घृणा से मुंह फेर लिया। शबनम ने रोनी सूरत बनाकर पुकारा-''मांजी!''
''हट जाओ मेरे सामने से। मेरी कोई बहू नहीं। मेरा कोई बेटा नहीं। तुम लोगों ने मिलकर मेरा सुहाग लूट लिया...।''
शबनम उनका यह व्यवहार देखकर डर गई। कमल ने उन सबको वहां से चले जाने को कहा और मां को पिताजी के हमराह भिजवा दिया। सभी सम्बन्धी और जान-पहचान वाले धीरे-धीरे चले गए। इंस्पेक्टर तिवारी भी उसी हुजूम में मौजूद था। कमल को देखते ही वह उसके करीब चला आया।
''मुझे बेहद अफसोस है कमल! काश कि तुम यहां होते!''
''इंस्पेक्टर! यह सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा, मैं सोच भी नहीं रूकता था।''
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