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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना को जब होश आया तो तिवारी ने सहारा देकर उसे मेज पर बैठा दिया। वह अधमुई-सी उन सब लोगों को देखने लगी। तिवारी ने ऐसी अवस्था में कोई और प्रश्न करना उचित नहीं समझा और उसे वहीं कछ देर आराम की अनुमति दे दी।
''आप लोग बाहर जा सकते हैं।'' तिवारी ने बनवारी और शबनम की ओर देखकर कहा।
वे दोनों अपनी जगह से उठे तो बनवारी ने पूछा-''तो मैं जाऊं हुजूर?''
''नहीं, आप लोग बाहर इंतजार कीजिए।''
दोनों चुपचाप बाहर चले गए तिवारी ने एक अटपटी-सी नजर अंजना के चेहरे पर डाली जो हल्दी की तरह पीला पड़ चुका था कमजोरी और घबराहट से उसकी पलकें बोझिल हो चुकी थीं। तिवारी उसे छोड़कर अपनी कुर्सी पर आ बैठा और दूसरी फाइलों को देखने लगा
पुलिस अफसर की हैसियत से अभी तक वह इस पहेली को सुलझा न सका। डिप्टी साहब की असली बहू मर चुकी है-यह बात अभी तक नकली बहू ने छिपा क्यों रखी? किस इरादे से वह परिवार में बहू बनी रही? इन सब बातों को समझने के लिए शायद काफी छानबीन की जरूरत थी। संभव है डिप्टी साहब की मौत का कारण भी यह अंजना ही हो।
इस खयाल के आते ही उसने मुड़कर अंजना की ओर देखा। घबराहट, कमजोरी और किसी अन्दरूनी चुभन के कारण उसकी आंखें बंद हो चुकी थीं।
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